Book Title: Jainism
Author(s): Vallabh Smarak Nidhi
Publisher: Vallabh Smarak Nidhi

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Page 95
________________ बाद में न्याय और नीति पूर्वक व्यापार करके धन उपार्जन करे । न्यायोपार्जित धन से शुद्ध भोजन बना हो, उनमें से नैवेद्य से जिनराज की मध्याह्न सम्बन्धी पूजा करे और मुनि आवे तो उनको दान दे । एवं वृद्ध रोगी, अतिथि, चौपाये आदि की सारसंभार करे । अन्न, औषध, पथ्य, चारा-पानी आदि की चिन्ता करके सात्विक ( रस-लोलुपता रहित ) योग्य भोजन करे । अर्थात् सूतक-पातक आदि लोक विरुद्ध और संसक्त अनन्तकायिकादि आगम-विरुद्ध मांस, मदिरादि उभयलोक विरुद्ध भोजन न करे। तथा लौल्यता-रस-लोलुपता से अपनी पाचन शक्ति से अधिक भोजन न करे । बाद में धर्मशास्त्र का परमार्थ चिन्तवन करे । अथवा योग्य वाणिज्य करके अपराह्न दिन (दोपहर के बाद का समय ) व्यतीत करके सूर्यास्त से पहिले फिर जिन पूजा करे। यदि दिन में दो बार भोजन करना हो तो चार घड़ी दिन शेष रहते हुए भोजन कर ले। त्रिकाल पूजा की विधि इस प्रकार है: प्रातःकाल वास सुगन्धी चन्दनादि द्रव्यों से पूजा करे। मध्याह्न में फूल नैवेद्य आदि से पूजा करे और संध्या को धूप, दीप, आरात्रिक ( आरती) आदि से पूजा करे। इति दिन कृत्य कथन । रात्रि-कृत्य यहां पर किंचिन्मात्र रात्रिकृत्य भी लिखते हैं: षडावश्यक करे, और योग्यकाल में निद्रा ले। प्रायः ब्रह्मचर्य का पालन करे। सोते हुए पंच परमेष्ठी-नमस्कार स्मरण करके सोये। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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