Book Title: Jainism
Author(s): Vallabh Smarak Nidhi
Publisher: Vallabh Smarak Nidhi

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Page 76
________________ चार-गतियों जैन धर्म में चार गतिया मानी गई है। १ नरक गति, २ तियेच गति, ३ मनुष्य गति और ४ देव गति । १ नरक गति-उसे कहते हैं जिसमें जीवोंको केवल दुःख ही दुःख होता है, किंचिन्मात्र भी सुख नहीं होता। इन नरक वासियों के रहने का स्थान सात पृथ्वीयों में माना है, उनके नाम ये हैं-१-रत्न-प्रभा, र-शर्कर-प्रभा, ३-बालुका-प्रभा, ४-पंक-प्रभा, ५-धूम प्रभा, ६-तमः-प्रभा, ७-तमस्तम-प्रभा । ये सातों पृथ्विया अधोलोक में है, इन पृथ्वियों के परस्पर अन्तर आदि विषयों का स्वरूप-वर्णन प्रज्ञापना आदि शास्त्रों में है । उक्त सातों पृश्वियों में रहने वाले जीवों को नरक गति के जीव कहते है, उनको किस प्रकार के दुःख होते हैं इत्यादि बातों का स्वरूप वर्णन प्रज्ञापना, प्रश्न व्याकरण, सूत्रकृतांग आदि सूत्रों में है। २ तिर्यच गति-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरीन्द्रिय और गाय भैंस, घोड़ा आदि पश्चेन्द्रिय ये सब तिर्यञ्च गति के जीव कहे जाते है।। ३ मनुष्य गति-मनुष्य मात्र इसी गति में माने जाते है। ४ देव गति-इसमें चार जाति के देवता माने गये हैं। उनके नाम ये है-१ भवनपति, ३ व्यंतर, ३ ज्योतिष्क, ४ वैमानिक । इनमें भुवनपति और व्यन्तर इन दो जातियों के देवता इसी पृथ्वी के ऊपर, नीचे तिर्यक् भाग में रहते हैं। ___ज्योतिष्क देवता-सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारे जो हमें आकाश मण्डल में दिखाई देते हैं, ये ज्योतिष्क देवता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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