Book Title: Jainism Author(s): Vallabh Smarak Nidhi Publisher: Vallabh Smarak NidhiPage 83
________________ पूर्वोक्त कथन पर सम्यक् प्रकार से श्रद्धा करने को ही सम्यग्दर्शन कहते हैं। ये दोयों ही (द्वादशाङ्ग-गणिपिटक श्रुतज्ञान और सम्यग्दर्शन ) श्रुत धर्म में गिने जाते हैं। यह संक्षेप में श्रुत धर्म का स्वरूप कथन किया है। अरिहन्त परमेश्वर की त्रिकाल विधि से पूजा करनी इत्यादि सब सम्यक्त्व की करणी (क्रिया ) को कहते हैं। ९. चारित्र धर्म चारित्र धर्म को तीर्थङ्करों ने दो प्रकार से कथन किया है। १ साधु धर्म, २ गृहस्थ धर्म । १ साधु धर्म इसमें साधुओं के लिये १७ प्रकार का संयम पालने की आज्ञा है संयम के १७ भेद ये हैं पांच महाव्रत-१ प्राणातिपात विरमण, २ मृषावाद विरमण, ३ अदत्तादान विरमण, ४ मैथुन विरमण और ५ परिग्रह विरमण । ___ चार कषाय-१ क्रोध, २ मान, ३ माया और ४ लोभ । इन चारों का त्याग । पाँच इन्द्रियों के विषय से निवृत्ति । तीन दण्ड-मनो दण्ड, वचन दण्ड और काया दण्ड । इन तीनों का त्याग । इस तहह कुल मिलाकर १७ प्रकार का संयम पाले । तथा १ क्षमा, २ मार्दव, ३ आर्जव, ४ निलाभता, ५ लाघव Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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