Book Title: Jainism
Author(s): Vallabh Smarak Nidhi
Publisher: Vallabh Smarak Nidhi

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Page 82
________________ २५–पञ्च महाव्रतधारी सम्यक्त्व ज्ञान सहित शुद्ध धर्म प्ररूपक को गुरु मानते हैं। २६-पूर्वोक्त अठारह दूषण रहित देव ने जो मुक्ति का मार्ग कहा है उसको धर्म मानते हैं। २७-द्रव्य ६ मानते हैं। ___२८-तत्त्व ९ मानते हैं। २८-काय ६ मानते हैं। ३०-गति ४ मानते हैं। ३१-जीव और अजीव दो राशि अर्थात् इस जगत् में चैतन्य और जड़ ये दो ही वस्तुएँ हैं। पूर्वोक्त जो कुछ सामान्य रूप से लिखा है, इनका सम्यक् स्वरूप ( यथार्थ विस्तृत वर्णन ) चार निक्षेप, सात नयाँ, दो प्रमाण, स्याद्वाद+, और सप्तभङ्गो की रीति से जाने, उसको 'श्रुत धर्म' कहते हैं। इस श्रुतज्ञान के स्वरूप कथन के लिये द्वादशाङ्ग-गणिपिटक श्रुतज्ञान है। ६ चार निक्षेप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव । * सात नय-१ नैगम, २ संग्रह, ३ व्यवहार, ४ ऋजुसूत्र, ५ शब्द, ६ समभिरूढ और ७ एवं भूत । + दो प्रमाण-१ प्रत्यक्ष, २ परोक्ष । स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तक अनुमान और आगम प्रमाण 'परोक्ष प्रमाण' के अन्तर्गत हैं। + स्याद्वाद–एक ही वस्तु में भिन्न-भिन्न दृष्टि बिन्दुओं से विविध धों का विचार करना, स्याद्वाद कहलाता है। जैसे एक ही पुरुष में पिता, पुत्र, चाचा, मामा आदि का व्यवहार होता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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