Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 18
________________ الغلط العلمي द्वितीय प्रथम करण समय प्रथम खण्ड 10m 1 कुल परिणाम परिणाम १३ १७० ४१ ज० से० उ० विशुद्धता | १६६४० १९२६२३६ परिणाम द्वि० [० खण्ड ज० से० उ० विशुद्धता Jain Education International तृ० खण्ड परिणाम १६२२२५४ ६६८-७५१ ५५ ७५२-८०६ ५६ | ८०७-८६२ ५७ | ८६३-६१६ ११५ २१८५३६४५-६६७२६४ ६६८-७५१ ५५ ७५२-८०६ ५६८०७ ८६२ १४२११५२२१२६४४ २३ ६४५-६६७ २४ ६६०-७५१ २५ ७५२००६ १३ २१०१११ ३४२ ३२ १२ ५१३-६४४५३६४५-६६७ ५४ १२ २०६५० | ४६२-६४१५१४४२५११ २२ २६३-६४४ २३ ६०-७५१ ६४५-६०० ५६३-६४४ १११ २०२४६ ४४३-४२१ ५० ४६२ - ५४१ ५१ ५४२-५६२ ५२ ४६२-५४१ ३१ १० १६८४८ ३६५-४४२ ४६ ६ ११६४४७ ३४८-३६४ ४८ ४४३- ४११५० ३१५-४४२ १४६ | ४४३-४११ ५० १८६४५ २५७ - ३०१ ४६ (१८२४४ २१३-२५६ ४५ ५ १७८४३ | १७०-२१२ ४४ ५४२-५६२ ४६२-५४१ ३६५४४२ ४१ ४४३ ४११ ३०२-३४७ ४७ ३४८-३६४ ४८ ३६५-४४२ २५७-३०१ ४६ | ३०२-३४७ ४७ ३४८-३१४ २१३-२५६ ४५ | २५७-३०१ ४६ । ३०२-३४७ १७६४२११८-१६६ ४३ १००-२१२ ४४ २९३-२५६ ४४ ८७-१२७ ४२ २३७ - ३०९ १२८- १६६४३ | १७०-२९२ ४४ २१३-२५६ १२८ - १६६ ४३ १७०-२१२ ८७-१२७४२ १२८-१६६ ४७-८६ ४१ ८७-१२७४२ ८-४६ ४० ४७- ८६ ४१ २०२-२४०४०२४०-३४४ ज० से० उ० विशुद्धता चतु० खण्ड ० ० ० विशुद्धता यहाँ स्पष्ट रीति से ऊपर और नीचे समयोंके परिणामों की विशुद्धता यथायोग्य समानता देखी जा सकती है । जैसे ठे समयके द्वितीय खण्ड के ४५ परिणामों से नं० १ वासा परिणाम २५७ अविभाग प्रतिच्छेदवाला है यदि एकको बृद्धिके हिसाब से देखें तो इस ही का नं० २५वाँ [२५७ + ( २५-१)] २८१ है । इसी प्रकार चौथे समयके चौथे खण्डका परिणाम भी २८९ अभिभाग प्रतिदाता है। इसलिए समान है। १० ६. परिणामों की विशुद्धताका अल्पबहुत्व तथा उसकी सर्पवत् चाल गो. जी./जी. प्र / ४६ / ११० /१ तेषां विशुद्धयल्पम हुत्वमुच्यते तद्यथा-प्रथमसमयप्रथमखण्डअन्यपरिणामविशुद्धिः सर्वत स्तोकापि जीवराशितोऽनन्तगुणा अविभागप्रतिवेदसग्रहारिमका भवति १६ अतस्तदुत्कृष्टपरिणाम विशुद्धिरनन्तगुणा । ततो द्वितीयखण्डजघन्यपरिणामविशुद्धिरनन्तगुणा सतत्तगुरकृष्टपरिणाम विशुदिरनन्तगुणा एवं तृतीयादिण्डेनापि जन्यपरिणामविशुद्धयोऽनन्तगुणानतारमण्डोर परिणाम विशुद्विपयतं वर्तन्ते पुन प्रथमसमय मखण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्ध द्वितीयसमयप्रथमण्डजधन्यपरि नामविशुद्धिरनन्तगुणा । ततस्तदुत्कृष्टपरिणाम विनिता । ४. अधः प्रवृत्तकरण निर्देश 1 1 ततो द्वितीयखण्डन्यपरिणामविशुद्धिरमन्तगुणा उतस्तदुष्टपरिणामविशुद्धिरनन्तगुणा । एवं तृतीयादिखण्डेष्वपि जघन्योत्कृष्टपरिणामविशुद्धयोऽनन्तगुणितक्रमेण द्वितीयसमयचरमपण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धिपर्यन्तं गच्छन् अनेन मार्गेण तृतीयादिसमवैष्यपि निर्वणकाण्डकडिचरममपर्यन्त जन्योत्कृष्टपरिणाम विशुद्धयोऽनन्तगुणतक्रमेण नेतव्या । प्रथमनिर्वर्गणकाण्डकचरमसमयप्रथमखण्डजघन्यपरिगामविशुद्धितः प्रथमसमयचरमखण्डोत्कृष्ट परिणामविशुद्धिरनन्तगुणा। ततो द्वितीयनिर्वर्गणकाण्डकप्रथमसमयप्रथमखण्डजघन्यपरिणामविशुद्विरनन्तगुणा ततस्तत्प्रथम निर्वणकण्डकद्वितीयसमयचरम खण्डोरटपरिणामविशुद्धिरनन्तगुणा ततो द्वितीयनिर्वणकण्डकद्वितीयसम |यप्रथमखण्डजधन्यपरिणामविशुद्धिरनन्तगुणा । ततः प्रथमनिर्वणका ण्डकतृतीयसमयचरमखण्डोत्कृष्ट परिणामविशुद्धिरनन्तगुणा एवमहिगया जघन्यादुत्कृष्टं उत्कृष्टजघन्यमिय्यनन्तगुणितमेण परिणामवि शुद्धिर्नोत्वा चरमनिर्वर्गणकाण्डक चरम समयप्रथमखण्डजघन्यपरिणामविशुद्धिरनन्तानन्तगुणा । कुत'। पूर्वपूर्व विशुद्धितोऽनन्तानन्तगुणा सिद्धत्वात् । ततश्चरमनिर्वगणकाण्डकप्रथमसमयचर मखण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धिरनन्तगुणा । ततस्तदुपरि चरमनिर्वर्गपकाण्डचरमसमयपरमलण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धिपर्यन्ता उत्कृष्टखण्डोत्कृष्टपरिणामविशुद्धयोऽनन्तगुणितक्रमेण गच्छन्ति । तन्मध्ये या जघन्योत्कृष्टपरिणामविशुद्धयोऽनन्तानन्यगुणिताः सन्ति तान विवक्षिता इति ज्ञातव्यम् । -अब तिनि निकै विशुद्धताका अभिभाग प्रतिच्छेदनिकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहिए है - प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम खण्डका जघन्य परिणामकी विशुद्धता अन्य सर्व ते स्वोक है तथापि जीन राशिका जो प्रमाण ता बनगुणा अविभाग प्रतिवेदनकै समूहको धा है । बहुरि यातै तिसही प्रथम समयका प्रथम खण्डका उत्कृष्ट परिनामकी विशुद्धता अनन्तगुणी है। तावे द्वितीय खण्डकी जघन्य परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है। ताते तिस ही का परिणामकी विशुद्धता अनन्तगुणी है। ऐसे ही क्रमते तृतीयादि खण्डनिविषै भी जघन्य उत्कृष्ट परिणामनिकी विशुद्धता अनन्तगुणी अनन्तगुणी अन्तका खण्डको उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धि पर्यंत प्रवर्त्ते है । ( पृ० १३३) । बहरि प्रथम समयसम्बन्धी प्रथम खण्डको परिणाम विशुद्धता द्वितीय समयके प्रथम खण्डकी जघन्य परिणाम विशुद्धता ( प्रथम समयके द्वितीय खण्डवत् । अनन्त गुणी है । ताते तिस ही की उत्कृष्ट विशुद्धता अनन्तगुणी है ताते तिस ही के द्वितीय खण्डकी जब परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है ताते तिस ही को उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है। ऐसे तृतीयादि खण्डनिविषै भी जयग्य उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी अनुक्रमकरि, द्वितीय समयका अन्त खण्डको उत्कृष्ट विशुद्धता पर्यन्त प्राप्त हो है (५० १३३) बहुरि इस ही मार्गकरि तृतीयादि समयामण्डन भी पूर्वोक्त लक्षणयुक्त जो निर्वर्गणा काण्डक ताका द्विचरम समय पर्यन्त जघन्य उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनन्त गुणानुक्रमकरि क्यावनी । बहुरि प्रथम निर्वणा काण्डकका अन्त समय सम्बन्धी प्रथमखण्डक जघन्य विशुद्धता प्रथम समयका अन्त खण्डकी उत्कृष्ट परिणाम अनन्त है। ताते दूसरे निर्वर्गेणा काण्डका प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम खण्डकी जयम्य परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है । ताते तिस प्रथम निर्वर्गणा काण्डकका द्वितीय समय सम्बन्धी अन्त खण्डकी उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है । ताते द्वितीय निर्वर्मणा काण्डकका द्वितीय समय सम्बन्धी प्रथम खण्डकी जघन्य परिणाम विशुद्धता अनन्तगुणी है । तातै प्रथम निर्वर्गणा काण्डकका तृतीय समय सम्बन्धी अन्त खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धता अनन्त गुणी है या प्रकार जैसे सर्पको पात इधर उधर और उधर इधर पलटन रूप हो है तैसे जघन्यते उत्कृष्ट और उत्कृष्टते जयम्य ऐसे पलहनि विषे अनन्तगुणो अनुक्रमकरिता प्राप्त करिए । 1 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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