Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 16
________________ करण ४. अधःप्रवृत्तकरण निर्देश तेस अध प्रवृत्तकरणकालका प्रथमसमयसम्बन्धी जेते परिणाम हैं अनेक जीवनिकै जे परिणाम सम्भवै तिनिके समूहको द्वितीय समयतेनित लगाय द्वितीयादि समयनिविर ऊपर-ऊपर अन्त समय परिणामपुंज कहिये । ऐसे क्रमत अंतसमय पर्यंत जानना। पर्यन्त समान वृद्धि ( चय) कर वर्द्धमान है ( पृ० १२०)। अंक तहाँ प्रथमादि समय सम्बन्धी परिणाम पुंजका प्रमाण श्रेढी संदृष्टिकरि कल्पना रूप परिमाण लीएं दृष्टान्त मात्र कथन करिए है । गणित व्यवहारका विधान करि पहिले जुदा जुदा कह्या है। सो सर्व सर्व अधकरण परिणामनिको संख्यारूप सर्वधन ३०७२ । बहुरि अध:- सम्बन्धी पुजनिको जोड़े असंख्यात लोकमात्र (३०७२ ) प्रमाण होई करणके कालके समयनिका प्रमाणरूप गच्छ १६ । बहुरि समय समय है । बहुरि इस अधःप्रवृत्तकरणकालका प्रथमादि समय सम्बन्धी परिपरिणामनिकी वृद्धिका प्रमाणरूप चय ४। (पृ० १२२)। तहां (१६ णामनिके विष त्रिकालवर्ती नानाजीव सम्बन्धी प्रथम समयके जघन्य समयनिविर्षे) क्रमतें एक-एक चय बधती परिणामनिकी संख्या हो मध्यम उत्कृष्ट भेद लिये जो परिणाम पुज कह्या (३६,४०...५७ तक), है-१६२, १६६, १७०, १७४, १७८, १२, १८६, ११०. १६४, १६८, ताके अध प्रवृत्तकरणकालके जेते समय तिनिको संख्यातकर भाग दिये २०२, २०६, २१०, २१४, २१८, २२२ (सबका जोड़-३०७२) । जेता प्रमाण आवे तितना खण्ड करिये। ते खण्ड निर्वर्गणा काण्डकके ये उक्त राशियें अध प्रवृत्तकरणके प्रथम समयसे लगाकर उसके चरम जेते समय तितने हो है (४)। वर्गणा कहिये समयनिकी समानता समय पर्यन्त ऊपर-ऊपर स्थापन करने चाहिए। (पृ० १२४) । तोहिं करि रहित जे उपरि ऊपरि समयवर्ती परिणाम खण्ड तिनिका आगे अनुकृष्टि कहिये है। तहाँ नीचेके समय सम्बन्धी परि- जो काण्डक कहिए सर्वप्रमाण सो निर्वर्गणा काण्डक है। (चित्रमें णामनिके जे खण्ड ते परस्पर समान जैसे होइ तैसे एक समयके चार समयों के १६ परिणाम खण्डोका एक निर्वगणा काण्डक है)। परिणामनि विर्ष खण्ड करना तिसका नाम अनुकृष्टि जानना । ए खण्ड तिनि निर्वर्गणा काण्डकके समयनिका जो प्रमाण सो अध प्रवृत्तकरणएक समयविषे युगपद (अर्थात् एक समयवर्तो त्रिकालगोचर ) अनेक रूप जो ऊर्ध्व गच्छ (अन्तर्मुहुर्त अथवा १६) ताके संख्यातवें भाग जीवनिके पाइयै तातै इनिको बरोबर स्थापन किए है (देखो आगे मात्र है (१६/४ =४ )। सो यह प्रमाण अनुकृष्टि गच्छका ( ३६ से ४२ संदृष्टिका यन्त्र) । (प्रथम समयके कुल परिणामोंको संख्या १६२ कह तक-४) जानना। इस अनुकृष्टि गच्छ प्रमाण एक एकसमय सम्बन्धी आए हैं। उसके चार खण्ड करने पर अनुकृष्टि रचनामें क्रमसे ३६,४०, परिणामनि विष खण्ड हो है (चित्र में प्रदर्शित प्रत्येक समय सम्बन्धी ४९.४२ हो है . इनका जोड १६२ हो है। इतने इतने अंक बरोबर परिणाम पुज जो ४ है सो यथार्थ में संख्यात आवली प्रमाण है, क्योंकि स्थापन किये। इसी प्रकार द्वितीय समयके चार खण्ड ४०,४१, ४२, अन्तर्मुहूर्त-मख्यात-संख्यात आवली) ते क्रम जानना। पृ० १२८ ४३ हो है। इनका जोड़ १६६ हो है । और इसी प्रकार आगे भो खण्ड महरि इहां द्वितीय समयके प्रथम खण्ड अर प्रथम समयका करते-करते सोलवें समयके १४, १५,५६,५७ खण्ड जानने ) इहाँ सर्व द्वितोय खण्ड (४०) ये दोऊ समान हो है। तैसे हो द्वितीय समयजघन्य खण्ड जो प्रथम समयका प्रथम खण्ड ३६ ताकै परिणाम निकै का द्वितीयादि खण्ड अर प्रथम समपका तृतीयादि खण्ड दोऊ समान अर सर्वोत्कृष्ट अन्त समयका अन्त खण्ड '५७ ताके परिणाम निकै हो हैं। इतना विशेष है कि द्वितोप समयका अन्त खण्ड सो प्रथम किसी ही खण्डके परिणामनिकरि सहश समानता नाहीं है, जाते समयका खण्डनिविर्षे किसो हो करि समान नाहीं।...ऐसे अधःअवशेष समस्त ऊपरके व निचले समयसम्बन्धी खण्डनिका परिणाम प्रवृत्त करणकालका अन्तसमय पर्यंत जानने । (पृ० १२६ )... पंजनिकै यथा सम्भव समानता सम्भव है। (पृ० १२५-१२६ ) । ऐसे तिर्यगरचना जो बरोबर (अनुकृष्टि) रचना तीहि विषै अब यथार्थ कथन करिये है...त्रिकालवर्ती नाना जोव सम्बन्धी एक एक समय सम्बन्धी खण्डनिके परिणामनिका प्रमाण कह्या। समस्त अध प्रवृत्तकरणके परिणाम असंख्यात लोकमात्र है, सो सर्व- -पूर्व अधकरणका एक एक समय विषे सम्भवतै माना जीवनिके धन जानना ( सहनानो ३०७२) बहुरि अध प्रवृत्तकरणका काल परिणामनिका प्रमाण कह्या था। अत' तिस विषे जुदे जुदे सम्भवते अन्तर्महर्तमात्र । ताके जेते समय होइ सो इहाँ गच्छ जानना (सह- ऐसे एक एक समय सम्बन्धो खण्डनि वि परिणामनिका प्रमाण इहाँ नानी १६) । श्रेणो गणित द्वारा चय व प्रथमादि समयोंके परिणामों- कहा है। 1ऊारिके ओर नोचे के समय सम्बन्धो खण्डनि विर्षे की संख्या तथा अनुकृष्टिगत परिणाम पुंज निकाले जा सकते हैं।) परस्पर समानता पाइये है, ताते अनुकृष्टि ऐसा नाम इहां सम्भवे हैं। (दे० 'गणित'/II/R)। (पृ० १२७) जितनो सख्या लोए ऊरिके समय विबै कोई परिणाम खण्ड हो है तितनो संस्था लोए निचले समय विष भो परिणाम खण्ड हो हैं। ऐसे १६ १५ १४ १३ ९२ ११ /१० ६ ५ ४ ३ २ १ | समय | निचले सम सम्बन्धो परिणाम खण्डत ऊपरिके समय सम्बन्धी परिणाम खण्ड विषै समानता जानि इसका नाम अब प्रवृत्तकरण कहा ९४ /१३५२५१०४६/४८४७४६ ४५४४४३ ४२४१ ४० ३६ प्र० खण्ड Polits ५४ ५३ ५२११०४६४८४७४६ ४५ ४४४३ ४२४१३० द्वि.खण्ड ४. परिणाम संख्यामें अंकुश व लांगल रचना ५६ ५५ ५४ ३ २ १९ १० १४६४८ ४७ ४६४५४४ ४३ ४२ ४१ तृ० खण्ड गो. जो./जो. प्र/४/१०८/६प्रथमसम पानुकृष्टिप्रथमसर्वजघन्यखण्डस्य ३६ ५७ ५६ ५५ ५४३ ५२ ११५०४६४८४७४६४५ | ४४४३ ४२ च० खण्ड चरिमसमयपरिणामानां चरमानुकृष्टिसर्वोत्कृष्टरवण्डस्य ५७ च कुत्रापि२२२/२१८२१४२११२०६/२०२/१९८१६४१६०१८६१८२१७८९७४१७०१६६१६२ सर्व धन, सादृश्यं नास्ति शेषोपरितनसमयवतिरखण्डानामधस्तनसमयवर्तिखण्डैः, अथवा अधस्तनसमपवतिखण्डानां उपरितनसमयतिरखण्डैः सह चतुर्थ । | तृतीय तृतीय | द्वितीय | । प्रथम निर्वर्गणा यथासंभव सादृश्यमस्ति । द्वितीयसमया ४० द्विचरमसमयपर्यन्तं १३ काण्डक प्रथमप्रथमखण्डानि चरमसमयप्रथमखण्डाद द्विचरमसमयपर्यंतखण्डानि च ५४/२५/५६ । स्वस्वोपरितनसमयपरिणामैः सह सादृश्याभावात विशुख परिणामनिको संख्या त्रिकालवर्ती नाना जोवनिकै असदृशानि । इयम कुशरचनेत्युच्यते । तथा द्वितोयसमया ४३ द्विअसंख्यात लोकमात्र है। तिनि विर्ष अधःप्रवृत्त करण मांडे पहिला चरमसमय १६ पर्यन्तं चरमचरमरवण्डानि प्रथमसमयप्रथमखण्डं ३६ समय है ऐसे त्रिकाल सम्बन्धी अनेक जीवनिकै जे परिणाम सम्भव वजितशेषरखण्डानि च स्वस्वाधस्तनसमयपरिणामेः सह सारश्याभावाड़ तिनिके समूहको प्रथम समय परिणामपुंज कहिये है। बहुरि जिनि विसदृशानि इयं लागलरचनेत्युच्यते। बहुरि इहाँ विशेष है सो जीवनिको अधःकरणमाडै दूसरा समय भया ऐसे त्रिकाल सम्बन्धी कहिये है-प्रथम समय सम्बन्धी प्रथम खण्ड (३६) सौ सर्वसे जघन्य जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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