Book Title: Jainendra Mahavrutti
Author(s): Devnandi Maharaj, Abhaynandi Maharaj, Shambhunath Tripathi, Mahadev Chaturvedi
Publisher: Bharatiya Gyanpith
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
४०
www.kobatirth.org
जैनेन्द्र-व्याकरणम्
शीर्ण हो जायें । ईंट पत्थरों से बने भौतिक कृतियोंको बचाने अथवा उनके उद्धारकी चिन्ताकी अपेक्षा इन सांस्कृतिक और बौद्धिक कृतियोंका बचाना, उनका उद्धार करना परम आवश्यक है। जो विद्वान् महानुभाव, धनीमानी श्रेष्ठ वर्ग तथा संस्थाएँ इस कार्य में लगी हुई हैं वे देश, जाति तथा धर्मकी वास्तविक सेवा कर रही हैं। देश के स्वतन्त्र हो जाने पर युगयुग उपार्जित प्राचीन वाङ्मयकी रक्षाका भार मुख्यतया राज्यको ही वहन करना चाहिए, परन्तु सम्प्रति हमारे नेता इस ओर उदासीन हैं ।
उपलब्ध जैन व्याकरण
जैन चाय द्वारा लिखे गये ६, ७ व्याकरण इस समय उपलब्ध प्रमुख हैं— जैनेन्द्र, शाकटायन और सिद्ध हैम । इनमें आचार्य देवनन्दी, जिनेन्द्रबुद्धि द्वारा प्रोक्त जैनेन्द्र व्याकरण सबसे प्राचीन है ।
आचार्य पूज्यपाद ने अपने
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
इन प्रमुख तीन व्याकरणों के ग्रन्थ भी अभी तक पूरे प्रकाशित नहीं हुए। सबसे अधिक हैम व्याकरण के ग्रन्थ प्रकाश में आये हैं । शाकटायन व्याकरण केवल चिन्तामणि नामक लघुवृत्ति सहित प्रकाशित हुआ [परिशिष्ट में मूल गणपाठ, लिङ्गानुशासन तथा धातुपाठ भी छपे हैं ] । सूत्रकारकी स्वोपज्ञ अमोघ महावृत्ति अभी तक लिखित रूप में ही क्वचित् उपलब्ध होती है । जैनेन्द्र व्याकरण भी तृतीय अध्यायके द्वितीय पादके ६० सूत्र तक भयनन्दी विरचित महावृत्ति सहित कुछ वर्ष पूर्व लाजरस कम्पनी काशीसे प्रकाशित हुया था [अब वह भी दुर्लभ है ] । यह प्रथम अवसर है कि भारतीय ज्ञानपीठ काशीने इस भारी कमीको पूर्ण करनेका बीड़ा उठाया और वह उसे ग्रभयनन्दीकी महावृत्ति सहित प्रकाशित कर रहा है।
जैनेन्द्र से प्राचीन व्याकरण
। उनमें से केवल तीन व्याकरण अपर नाम पूज्यपाद, इतर नाम
३४ ]
।
शब्दानुशासन में निम्न ६ पूर्ववर्ती आचार्यों का उल्लेख किया है१ - गुणे श्रीदत्तस्यास्त्रियाम् [ १ । ४ । २ - कृवृषिमृजां यशोभद्रस्य [ २ । १ ३ - रादु भूतबलेः [ ३ । ४ । ८३ ] ४ - रात्रेः कृति प्रभाचन्द्रस्य [ ४ | ३ | १८० ] ५ -- वेत्तेः सिद्धसेनस्य [ ५ । ११७ ]
६ - चतुष्टयं समन्तभद्रस्य [ ५ । ४ । ५४० ]
६
ε ]
For Private And Personal Use Only
इन छ आचार्यों में से किसीका भी ग्रन्थ इस समय उपलब्ध नहीं है । अनेक विद्वानोंको इन श्राचार्यों के व्याकरण-शास्त्र-प्रवक्तृत्वमैं भी सन्देह है । जैसा कि जैन इतिहास - विशेषज्ञ श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीने अपने 'जैन साहित्य और इतिहास' [ पृ १२० ] में लिखा था
"इन छ आचार्यों से किसीका भी कोई व्याकरण ग्रन्थ नहीं है । परन्तु जान पड़ता है इनके अन्य ग्रन्थोंमें कुछ भिन्न तरहके शब्द प्रयोग किये गये होंगे और उन्हींको व्याकरण- सिद्ध करने के लिए ये सब सूत्र रचे गये हैं ।"
१ सम्प्रति है व्याकरणकी केवल लघुवृत्ति सुप्राप्य है, अन्य सभी मुद्रित ग्रन्थ दुष्प्राप्य हो गये । इनका पुनर्मुद्रण अत्यन्त श्रावश्यक है ।
२ यह महावृत्ति भी शीघ्र ही भारतीय ज्ञानपीठ काशीसे ही प्रकाशित होगी ।
३ यद्यपि माननीय प्रेमीजीने इस विचारकी निस्सारताको समझकर अपने ग्रन्थके द्वितीय संस्करण में उक्त अंश निकाल दिया, पुनरपि जिनकी ऐसी धारणा अभी भी है उनके विचारोंके प्रतिनिधित्व रूपमें उक्त पक्तियाँ उद्धृत की हैं।