Book Title: Jainatva ki Zaki
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 140
________________ एवं सद्भावना के सुखद वातावरण का निर्माण हो सकता है। कलह और संघर्ष का बीज एक-दूसरे के दृष्टिकोण को न समझने में ही है। स्याद्वाद दूसरे के दृष्टिकोण को समझने में सहायक होता है। यहाँ तक स्याद्वाद को समझने के लिए स्थूल लौकिक उदाहरण ही काम में लाए गए हैं। अब दार्शनिक उदाहरणों का मर्म भी समझ लेना चाहिए। यह विषय जरा गम्भीर है, अतः यहाँ सूक्ष्म निरीक्षण पद्धति से काम लेना ठीक रहेगा। नित्य और अनित्य अच्छा, तो पहले नित्य और अनित्य के प्रश्न को ही लेवें। जैनधर्म कहता है कि प्रत्येक पदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी है। साधारण लोग इस बात पर घपले में पड़ जाते हैं कि जो नित्य है, वह अनित्य. कैसे हो सकता है ? और जो अनित्य है, वह नित्य कैसे हो सकता है ? परन्तु जैन-धर्म अनेकांतवाद के द्वारा सहज में ही इस समस्या को सुलझा देता है। ___कल्पना कीजिए-एक घड़ा है। हम देखते हैं कि जिस मिट्टी से घड़ा बना है उसी से सिकोरा, सुराही आदि और भी कई प्रकार के बर्तन बनते हैं। हाँ, तो यदि उस घड़े को तोड़कर हम उसी की मिट्टी से बनाया गया कोई दूसरा बर्तन किसी को दिखलाएँ, तो वह कदापि उसको घड़ा नहीं कहेगा। उसी घड़े की मिट्टी के होते हुए भी उसको घड़ा न कहने का कारण क्या है ? कारण और कुछ नहीं, यही है कि अब उसका आकार घड़े जैसा नहीं है। इससे यह सिद्ध हो जाता है कि घड़ा स्वयं कोई स्वतन्त्र वस्तु नहीं है, बल्कि मिट्टी का एक आकार-विशेष है। परन्तु वह आकार-विशेष मिट्टी से सर्वथा भिन्न नही हैं, उसी का एक रुप है। क्योंकि भिन्न-भिन्न आकारों में परिवर्तित हुई मिट्टी ही जब घड़ा, सकोरा सुराही आदि भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित होती है, तो इस स्थिति में विभिन्न आकार मिट्टी से सर्वथा भिन्न कैसे हो सकते हैं ? इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only न्तवाद (129) www.jamembrary.org

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