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संसार का रचयिता कौन है ? यह प्रश्न बड़ा ही उलझा हुआ है।
विश्व के विभिन्न धर्म और दर्शनों ने ईश्वर को संसार का रचयिता मानकर इस विकट पहेली को सुलझाना चाहा, किन्तु प्रश्न पहले से भी अधिक उलझ गया।
ईश्वर को जगत् कर्ता मानने में क्या-क्या उलझनें आती हैं और उसे कर्ता न मानने से किस प्रकार इस प्रश्न का समाधान होता है।
जैन-दृष्टि से इन विषय की रोचक कथा दार्शनिक चर्चा प्रस्तुत निबन्ध में की गई है।
ईश्वरजगत्कर्ता नहीं
संसार के धर्मों में वैदिक, इस्लाम और ईसाई आदि धर्म ईश्वर को जगत् का कर्ता-धर्ता मानते हैं। यद्यपि जगत् के बनाने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में परस्पर काफी मत-भेद है, परन्तु जहाँ ईश्वर को जगत्कर्ता मानने का प्रश्न है, वहाँ सब एकमत हो जाते हैं। - जैन-धर्म का मार्ग इन सबसे भिन्न है। वह जगत् को अनादि व अनन्त मानता है। उनका विश्वास है कि जगत् न कभी बनकर तैयार हुआ है और न कभी नष्ट ही होगा। पदार्थों के रुप बदल जाते हैं, परन्तु मूलतः किसी भी पदार्थ का नाश नहीं होता। इसी सिद्धान्त के आधार पर जगत् का रुप बदल जाता है, समुद्र की जगह स्थल और स्थल की जगह समुद्र हो जाता है, उजड़े हुए भूखण्ड जनाकीर्ण हो जाते हैं, ओर जनाकीर्ण प्रदेश बिल्कुल उजाड़, सुनसान बन जाते हैं। खण्ड-प्रलय होता रहता है, परन्तु महा-प्रलय होकर एक दिन सब
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ईश्वर जगत्कर्ता नही (135) For Private & Personal Use Only
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