Book Title: Jainatva ki Zaki
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 193
________________ अफ्रीका के घने जंगलों में ऐसे पेड़ पाये गये हैं, जो बड़े-बड़े जानवरों को भी दूर से अपना शाखा-जाल फैलाकर पकड़ लेते हैं। उनके शिकंजे से निकल भागना फिर असम्भव हो जाता है। ये पेड़ मनुष्यों को भी यथावसर चट कर जाते है। मनुष्य के पास आते ही वे उसको भी अपनी टहनियों से पकड़ लेते हैं और चारों ओर से टहनियों के बीच दबाकर रक्त चूस लेते हैं। कितना भयंकर कर्म है इनका ! वृक्षों की सजीवता का यह प्रबल प्रमाण है। पुनश्च लेख का उपसंहार किया जा चुका है, तथापि वनस्पति में जीव की सिद्धि के लिए अभी कुछ कहना शेष है। लेखक के सामने विश्वबिहार नामक विज्ञान-सम्बन्धी पुस्तक है, जिसमें इस सम्बन्ध की खासी अच्छी जानकारी संग्रहीत है। पाठकों के ज्ञानवर्द्धन के लिए संक्षेप में उसका सार यहाँ देना अप्रसंगिक न होगा। वृक्ष, जानवरों से बहुत-सी बातों में मिलते हैं। इस सम्बन्ध में पहली बात तो यह है कि केवल जीव-धारी ही अपने माता-पिता और पड़ोसियों का चरित्र ग्रहण करता है। अस्तु यदि पड़ोस स्वास्थ्यप्रद है, तो पौधे मजबूत और मोटे होंगे। और जिस तरह तन्दुरुस्त बच्च स्त्रियों और पुरुषों की मुस्कराहट देखकर जाना जाता है कि ये स्वस्थ है उसी प्रकार पौधों की सुन्दर पत्तियाँ और बढ़िया फूलों से मालूम हो जाता है कि इन्हें अनुकूल पड़ोस मिला है। जीवित रहने के लिए हमें साँस लेने की जरुरत होती है। यही बात पौधों के लिए भी लागू होती है। पौधे की यदि आक्सीजन अर्थात् . प्राणप्रद वायु न मिले, तो वह सूख कर नष्ट हो जायेगा। जिस प्रकार हम अपने नथनों के द्वारा हवा को अन्दर खींचते हैं, उसी प्रकार पौधे भी। यद्यपि पौधों के साँस वाले छिद्र इतने छोटे होते हैं कि उन्हें देखने के लिए अणुवीक्षण यन्त्र की आवश्यकता होती है। जन्म जैनत्व की झाँकी (182) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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