Book Title: Jainatva ki Zaki
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 201
________________ कुमार पाल भी सेवा - क्षेत्र में जैन-संस्कृति की मर्यादा को बराबर सुरक्षित रखते हैं । मध्यकाल में जगडूशाह, पेथड़ और भामाशाह जैसे धन- कुवेर भी; जन-समाज के कल्याण के लिए अपने सर्चस्व की आहुति दे डालते हैं, और स्वयं बरसने के बाद रिक्त बादल की-सी स्थिति में हो जाते हैं । जैन- समाज ने जन समाज की क्या सेवा की है, इसे लिए सुदूर इतिहास को अलग रहने दीजिए, केवल गुजरात, मारवाड़, मेवाड़ या कर्नाटक आदि प्रान्तों का एक बार भ्रमण कर जाइए, इधर-उधर खण्डहरों के रुप में पड़े हुए ईट-पत्थर पर नजर डालिए, पहाड़ों की चट्टानों पर के शिलालेख पढ़िए, जहाँ-तहाँ देहात में फैले हुए जन-प्रवाद सुनिए, आपको मालूम हो जायगा कि जैन - संस्कृति क्या है तथा उसके साथ जन-सेवा का कितना अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध हैं । जहाँ तक मैं समझ पाया हूँ संस्कृति व्यक्ति की नहीं होती, समाज की होती है, और समाज की संस्कृति का यह अर्थ है कि समाज अधिक-सेअधिक सेवा की भावना से ओत-प्रोत हो; उसमें द्वेष नहीं, प्रेम हो, द्वैत नहीं, अद्वैत हो, एक रंग-ढंग हो, एक रहन-सहन हो, एक परिवार हो । संस्कृति का यह विशाल आदर्श जैन-संस्कृति में किस प्रकार पूर्णतया घटित हुआ है, इसके लिए जैन-धर्म का गौरवपूर्ण उज्जवल अतीत पूर्ण रुपेण साक्षी है। मैं आशा करता हूँ, आज का वर्तमान जैन- समाज भी अपसे महान् अतीत के गौरव की रक्षा करेगा, और भारत की वर्तमान विकट परिस्थिति में बिना किसी जाति, धर्म, कुल या देश के भेवभाव के दरिद्र नारायण की सेवा में अग्रणी बनेगा, और जन सेवा की ही भगवान् की सच्ची उपासना समझेगा। - आचारांग, महावीर जीवन । २. आचार्य हेमचन्द्र और नेमिचन्द्र कृत महावीर चरित्र । जैनत्व की झाँकी (190) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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