Book Title: Jainatva ki Zaki
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 183
________________ एक कुम्हार को कितना अधिक महत्व दिया है ? विश्व-वंद्य महापुरुष का, एक साधारण कुम्हार के घर पर पधारना, कोई मामूली घटना नहीं है। भगवान् महावीर के उदार विचारों का यह सच्चा मित्र है। - (जाति : जन्म से नहीं, कर्म से) ___भगवान् महावीर के वर्ण-व्यवस्था-सम्बन्धी विचार अतीव उग्र एवं क्रान्तिकारी थे। वे जन्मतः किसी को ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र आदि नहीं मानते थे। उन्होंने सदा कर्त्तव्य पर ही जोर दिया है। जातिवाद को कभी भी प्रश्रय नहीं दिया। उन्होंने जाति को जन्म से नहीं, कर्म . से माना है। इस विषय में उनका मुख्य धर्म-सूत्र था "कम्मुणा बंभणो होई, कम्मुणा होई खत्तिओ। बइसो कम्मुणा होई, सुद्दो हवई कम्मणा।" उत्तराध्ययन २५, ३३ अर्थात् जन्म की अपेक्षा से सब-के-सब मनुष्य हैं। कोई भी व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र होकर नहीं आता। वर्ण-व्यवस्था तो मनुष्य के अपने स्वीकृत कर्त्तव्य से होती है। अतः जो जैसा करता है, वह वैसा ही हो जाता है। अर्थात् कर्त्तव्य के बल से ब्राह्मण शूद्र हो सकता है, और शूद्र ब्राह्मण हो सकता है। __ भगवान् महावीर के संघ में एक मुनि थे। उनका नाम था हरिकेशबल। वे जन्मतः चांडाल-कुल में पैदा हुए थे। उनका इतना त्यागी एवं तपस्वी जीवन था कि बड़े-बड़े सार्वभौम सम्राट तक भी उन्हें अपना गुरु मानते थे, और सभक्ति-भाव उनके चरण-कमल छुआ करते थे। और तो क्या, बहुत से देवता भी इनके भक्त थे। इन्हीं घोर तपस्वी, हरिजन मुनि हरिकेशवल की गौरव-गाथा के सम्बन्ध में, - - - - जैनत्व की झांकी (172) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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