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योगजन्य लब्धियां सारोद्धार' में २८ और विशेषावश्यकभाष्य' में २८ है । इनके वर्गीकरण में भी भिन्नता है ।
इनके अतिरिक्त हेमचन्द्र के योगशास्त्र और शुभचन्द्र रचित ज्ञानार्णव' में अनेक लब्धियों का वर्णन है और उनका विवेचन भी विस्तार से हुआ है । इन दोनों ग्रन्थों में लब्धियों का वर्णन चमत्कारिक शक्तियों के रूप में हुआ है, जैसे जन्म-मृत्यु का ज्ञान, शुभ-अशुभ शकुनों से भविष्य का ज्ञान अथवा होने वाली घटनाओं को जान लेना, काल ज्ञान, परकाय प्रवेश आदिआदि ।
प्रवचनसारोद्धार में निरूपित २८ लब्धियों का संक्षिप्त परिचय इस
प्रकार है
(१) आमोसहि— इस लब्धि के प्रभाव से योगी के शरीर-स्पर्श मात्र से रोगी व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है । तपस्वियों और योगियों के चरण-स्पर्श की परम्परा के पीछे यह भी एक कारण हो सकता है ।
(२) विप्पोसहि - योगी के मल-मूत्र में औषधि की शक्ति आ जाना । (३) खेलोसहि— योगी की श्लेष्मा में सुगन्धि तथा रोग निवारण
क्षमता ।
(४) जल्लोसहि - योगी के कान, मुख, नाक आदि के मैल का औषधि रूप में परिणमित हो जाना ।
(५) सबोसहि - योगी के मल-मूत्र, नख-केश आदि सभी अंगों में सुगन्धि और रोग उपशमन की शक्ति ।
१ प्रवचनसारोद्धार २७० / १४६२ - १५०८ २ आमोसहि विप्पोसहि खेलोसहि जल्लोस हि चेव । सव्वसहि संभिन्ने ओहि रिउ विउलमइ लद्धी ।। १५०६ ॥ चारण आसीविस केवलियगणहारिणो य पुव्वधरा । अरहंत चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा य ।।१५०७।। खीरमहुसप्पि आसव, कोट्ठय बुद्धि पयाणुसारी य । तह बीयबुद्धि तेयग आहारग सीयलेसा य ॥। १५०८ ।। वेउव्वदेहलवी अक्खीण महाणसी पुलाया य । परिणाम तववसेण एमाई हुति लद्धीओ ।। १५०६ ॥ ३ योगशास्त्र, प्रकाश ५ और ६
४ ज्ञानार्णव, प्रकरण २६
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- विशेषावश्य व भाष्य
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