Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 460
________________ नवकार महामंत्र की साधना ३८१ ate सोपान में आचार्य के स्वरूप का ध्यान करें । स्व पर प्रकाशक दीपशिखा के समान पीत वर्ण की साधना करें, देखें और अपने शरीर के कण-कण और अणु-अणु से निकलती पोले रंग की प्रभा को देखें । योगशास्त्रों में विशुद्धि केन्द्र का काफी महत्व है । इसका स्थान कंठ है । यह प्राणी के आवेगों-संवेगों को नियन्त्रित करता है । वैज्ञानिक यहाँ थाइराडड ग्रंथि मानते हैं और उसे आवेगों का नियामक स्वीकार करते हैं । पीला रंग ज्ञान वृद्धि में सहायक होता है, ज्ञान तंतुओं को बलशाली बनाता है । विशुद्धि केन्द्र, पीले रंग और 'णमो आयरियाणं' पद – इन तीनों के संयोजित ध्यान-साधना से साधक के आवेग -संवेगों का नाश होता है, उसकी चित्तवृत्तियाँ उपशांत होती हैं । यह नवकार मंत्र के तीसरे पद 'णमो आयरियाणं' की साधना है । णमो उवज्झायाणं इस पद का ध्यान आनन्द केन्द्र (हृदय कमल) में मन को एकाग्र करके किया जाता है तथा इस पद का वर्ण निरभ्र आकाश जैसा नील वर्ण है । इस पद की साधना के भी चार सोपान हैं । प्रथम सोपान में साधक अक्षरों का ध्यान करता है । दूसरे सोपान में पूरे पद का ध्यान करता है । तीसरे सोपान में इस पद के अर्थ का तथा उपाध्यायजी के गुणों का चिन्तन साधक करता है । चौथे पद में वह उपाध्यायजी के स्वरूप का ध्यान करता है । यह संपूर्ण ध्यान साधक निरभ्र आकाश के समान नीले रंग में करता है । नीला रंग शांति प्रदायक है, तथा कषायों और उनके आवेग को शांत करता है । जैसे - क्रोध के आवेग के समय यदि साधक नीले रंग का ध्यान करे तो कोध उपशांत हो जायेगा । यह रंग आत्मसाक्षात्कार में भी सहायक तथा समाधि और चित्त की एकाग्रता में निमित्त बनता है । आनंद केन्द्र, नीले रंग और 'णमो उवज्झायाणं' पद - इन तीनों के संयोग से साधक की हृदयगत कषायधारा उपशांत होती है, उसकी चित्तवृत्ति एकाग्र होती है तथा समाधि में साधक अवस्थित होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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