Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 465
________________ ३८६ जैन योग : सिद्धान्त और साधना नवकार मंत्र के पांच पद और ये चार पद मिलकर नवपद कहलाते हैं तथा इन्हीं को सिद्धचक्र कहा जाता है। साधक जब तक इन सभी (नौ) पदों का अलग-अलग ध्यान एवं जप करता है तब तक वह नवपद का ध्यान-जप-साधना कहलाती है और जब अष्टदल कमल (हदय-कमल आदि) के रूप में जाप करता है, ध्यान और साधना करता है, तब वह सिद्धचक्र का ध्यान-साधना कहलाती है। अंतर आत्मामां सिदचकरी मांडणी नमो सिदाणं नमो उवझायागनमोलोएससाहणं /--नमो आयुरियाणं जनमोदसणस्स नमो णाणस्स नमोचरित्तस्स MA नमो तवस्स - - Sar - - - - नमो अरिहंताणं - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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