Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 473
________________ ३६४ जैन योग । सिद्धान्त और साधना देखता है । कभी उसे चंचल और कभी स्थिर करता है । कभी 'अहं' पद को आकाशव्यापी देखता है तो कभी उसे अणु के समान अति सूक्ष्म रूप में ध्यान का विषय बनाता है। अणरूप अह अत्यन्त शक्तिशाली श्वेत किरणों का विकीरणन करता है । इससे साधक का समस्त ललाट और कपाल (मनःचक्र, सोमचक्र और सहस्रार चक्र) प्रकाशित हो जाता है। परिणमतः ये तीनों चक्र (समष्टि रूप से एक चक्र-सहस्रार) जाग्रत हो जाते हैं। 'अर्ह' पद के जप-ध्यान से ये सम्पूर्ण सातों (अथवा ६) चक्र शीघ्र ही जाग्रत होते हैं । इसका कारण यह है कि ध्वनि शास्त्र की दृष्टि से ह्रस्व (अ) और प्लुत (ह) दोनों प्रकार की ध्वनियों का इसमें समायोजन है । 'ह' प्लुत ध्वनि महाप्राण ध्वनि है । अतः साधक जब इसका उच्चारण करता है तो उसे प्राण शक्ति (ॐ अथवा 'सोऽहं' के उच्चारण की अपेक्षा) अधिक लगानी पड़ती है। दूसरे शब्दों में, 'अहं' के उच्चारण के समय प्राणशक्ति अधिक ऊर्जस्वी होती है। उपांशु जप करते समय जब साधक अन्तर्जल्प या सूक्ष्म वचनयोग द्वारा इस मन्त्र का जप-ध्यान करता है तो उसकी ध्वनि तरंगे-भाषा वर्ग णा के सूक्ष्म पुद्गल शक्ति केन्द्र (नाभिकमल) से ऊर्ध्वगामो बनकर सीधे आज्ञा चक्र तथा सहस्रार चक्र से टकराते हैं, सम्पूर्ण मस्तिष्क और उसके ज्ञानवाही तन्तु झनझना उठते हैं । भाषा वगंणा को सूक्ष्म ध्वनि तरंग विद्य त तरंगों में परिवर्तित हो जाती हैं। परिणामस्वरूप साधक का सम्पूर्ण तेजस् शरीर उत्तजित हो जाता है-तीव्र गति से परिस्पन्दन करने लगता है । इसका प्रभाव कार्मण शरीर पर भी पड़ता है, उसके प्रकम्पनों की गति भी बढ़ जातो है। भगवान महावीर ने जो कहा है कि साधक अपने शरीर को धुने (धुणे सरोर) वह स्थिति आ जाती है । परिणाम यह होता है कि तेजस् शरीर स्थित सभी चक्र जागृत-अनुप्राणित हो जाते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि कर्म निर्जरा अति तीव्र गति से होती है, फलतः आत्म-शुद्धि होती है तथा ज्ञान एवं शरीर सम्बन्धी अनेक विशिष्ट लब्धियों की प्राप्ति होती है। __ साधक को 'अर्ह' पद के जप-ध्यान से अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। उनमें से कुछ ये हैं (१) उसकी मस्तिष्कीय शक्तियाँ अति प्रबल हो जाती हैं। (२) आधुनिक विज्ञान के अनुसार आर० एन० ए० रसायन (जो मस्तिष्क की समस्त गतिविधियों को संचालित करता है। उसकी प्राणवत्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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