Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 506
________________ 'योग' जीवन विद्या है। योग का अध्ययन, अनुशीलन और साधन-जीवन के सर्वतोमुखी विकास के लिए आवश्यक है। प्रस्तुत पुस्तक में जैन परम्परा सम्मत योग-प्रणाली को ध्यान में रखकर योगविद्या के इतिहास, योग के विभिन्न प्रकार, साधनाएं और योगिक उपलब्धियों के विषय में सर्वथा मौलिक तथा स्वतन्त्र दृटि से चिन्तन करते हुए आज तक के ज्ञान-विज्ञान की महत्वपूर्ण उपलब्धियों एवं अनुसंधान के आलोक में विवेचन किया गया है। इस पुस्तक के मूल लेखक हैं जैनधर्म दिवाकर आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज / उनकी अमर कृति-"जैनागमों में अष्टांगयोग" का यह परिवद्धित तथा परिष्कृत नव संस्करण है। इसके विद्वान सम्पादक हैं-प्रवचनभूषण श्री अमरमुनिजी आप भारतीय धर्म, दर्शन के अधिकारी विद्वान हैं और समस्त धर्म-सम्प्रदायों में समन्वय मूलक विचारधारा के समर्थक हैं। मूल्य : केवल पचास रुपया आवरण पृष्ठ के मुद्रक : शैल प्रिन्टर्स, माईथान, आगर: 3 ain B ersal Hacaanetunepal

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