Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 463
________________ ३८४ म योग : सिद्धान्त और साधना इस अरुण वर्ण के 'गमो सिद्धाणं' पद को साधक उसमें तल्लीन बना देखता रहे, तन्मय हो जाय । तदुपरान्त ऐसा चिन्तन करे कि दोपहर की धूप-पीले रंग की सूर्य रश्मियाँ फैली हुई हैं । सम्पूर्ण जगत सुनहरी (स्वर्ण के समान पीले रंग वाला) हो गया है। उसमें से अत्यधिक स्फुरायमान—कोटि-कोटि स्वर्ण-रश्मियाँ किरणें बिखेरता हुआ ‘ण मो आयरियाणं' पद उभर आया है। साधक इस पद के दर्शन में (देखने में) तल्लीन हो जाय । फिर यह विचारे कि आसमान विल्कुल ही साफ है, न वहाँ सूर्य का प्रकाश है और न चन्द्र का ही प्रकाश। आसमान अपने सहज-स्वाभाविक रूप में है, उसका वर्ण हल्का नीला है। उसमें से अत्यधिक चमकीला 'णमो उवज्झायाणं' पद उभर आया है । उसकी किरणें बहुत ही सौम्य और शीतलतादायक हैं। साधक का अपना तन-मन और चेतना- सभी कुछ अनुपम शीतलता का अनुभव करने लगे। इस प्रकार शीतलता का अनुभव करता हुआ साधक इस पद के ध्यान में तन्मय और तल्लीन हो जाय । इसके बाद साधक चिन्तन करे कि अत्यधिक चमकीला 'णमो लोए सव्वसाहूणं' पद उभर रहा है। उसकी चमक बढ़ती ही जा रही है और उसके प्रभाव से सम्पूर्ण दिशा-विदिशाएँ श्यामवर्णी हो गई हैं। साधक के स्वयं के शरीर के चारों ओर काले रंग का एक अभेद्य कवच निर्मित हो गया है और वह स्वयं उस पद के ध्यान में तल्लीन है। इस प्रकार की साधना से साधक की चेतना का ऊर्ध्वारोहण और आत्मिक विकास तीव्र गति से होता है। 'नवपद' की साधना नव पद में नौ पद होते हैं, जिनमें से पांच पद तो नवकार मंत्र के ही हैं । शेष चार पद हैं-(१) नमो नाणस्स ,(२) नमो सणस्स, (३) नमो चरितस्स, (४) नमो तवस्स। किन्हीं आचार्यों ने ४ पद ये माने हैं-(१) एसो पंच णमोकारो, (२) सम्व पाचप्पणासणो, (३) मंगलाणं च सव्वेसि (४) पढमं हवइ मंगलं । इन नमो नाणस्स, नमो दसणस्स, नमो चरित्तस्स, नमो तवस्स पदों की साधना का क्रम वही है, जो नवकार मंत्र के पांच पदों का है। इनमें से प्रत्येक पद का ध्यान भी चार सोपानों में किया जाता है । विशेषता इतनी है कि इन चारों पदों का ध्यान श्वेत वर्ण में किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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