Book Title: Jain Yog Siddhanta aur Sadhna
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatm Gyanpith

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Page 430
________________ प्राण-शक्ति को अद्भुत क्षमता और शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता ३५१ तीनों का सम्मिलित प्रभाव यह होता है कि भक्त को भी ऐसा लगता है जैसे असीम शक्ति का प्रवाह हड्डियों को चोरता हुआ उसके अन्दर प्रवेश कर रहा है। शक्तिपात अधिकतर एक कनपटी से दूसरी कनपटी तक ललाट पर दिया जाता है। कनपटी में ही ध्वनिवाहिनी नाड़ियाँ हैं और ललाट के अन्दर ही दृष्टिवाहिनी नाड़ियाँ (olfactory nerves) हैं तथा भ्र मध्य में ही पिट्यूटरी ग्रन्थि (pitutary gland) है, जो स्वामी ग्रन्थि (master gland) कहलाती है तथा यह ग्रन्थि ज्ञान-विज्ञान कोष है। अतः किसी भक्त को विभिन्न प्रकार की विचित्र-विचित्र ध्वनियाँ सुनाई देने लगती हैं तो किसी को विभिन्न प्रकार के रंग तथा दृश्य; इसी प्रकार किसी को विभिन्न प्रकार की अनुभूतियाँ होने लगती हैं । यद्यपि यह ध्वनिवाहिनी नाड़ियों, दृष्टिवाहिनी नाड़ियों और पिटयूटरी ग्रन्थि के उत्तजित होने से होता है किन्तु भोला भक्त योगी से अत्यधिक प्रभावित हो जाता है और उसे विशिष्ट शक्तिसम्पन्न तथा भगवान तक मानने लगता है। यह शक्तिपात केवल चमत्कार-प्रदर्शन और भक्तों को प्रभावित एवं आकर्षित करने के लिए होता है । इससे भक्त प्रभावित भी हो जाते है और योगी का यश भी फैल जाता है, किन्तु योगी स्वयं बहुत घाटे में रहता है। जिस प्राणशक्ति को वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति और आत्मिक प्रगति में उपयोग करके आत्मिक शुद्धि कर सकता है, उसे इस चमत्कारप्रदर्शन में बरबाद कर देता है और इस तरह जब अधिक शक्ति बरबाद हो जाती है तो वह स्वयं शक्तिहीन-सा हो जाता है। इसीलिए यह देखा जाता है कि कुछ दिनों तक एक योगी की तूती बोलती है, उसका खूब नाम और यश फैल जाता है, लोगों की जबान पर उसका नाम चढ़ जाता है, किन्तु कुछ दिनों बाद वह निस्तेज हो जाता है। कोई नया योगी संसार के रंगमंच पर चमकने लगता है और पहले योगी को लोग भूल जाते हैं। कुछ दिन बाद इस नये योगी की भी यहो दशा होती है । यह चक्र चलता रहता है । प्राणशक्ति के चमत्कार दिखाने वालों का यही हश्र होता है। प्राणशक्ति और मानसिक एवं शारीरिक स्वस्थता सामान्यतः शरीरशास्त्रियों की मान्यता है कि साधारणतः मनुष्य को स्वस्थ रहना चाहिए। प्रकृति ने मानव-शरीर की रचना इस प्रकार की है कि मनुष्य १०० वर्ष की आयु तक स्वस्थ रह सकता है, यदि कोई विशिष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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