Book Title: Jain Vidya Ke Vividh Aayam
Author(s): Fulchandra Jain
Publisher: Gommateshwar Bahubali Swami Mahamastakabhishek Mahotsav Samiti

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Page 5
________________ दो शब्द गोम्मटेश्वर भगवान् बाहुबली स्वामी के भव्य महामस्तकाभिषेक महोत्सव की पूर्व वेला में आयोजित पञ्चदिवसीय अखिल भारतीय जैन विद्वत्सम्मेलन में आयोजन समिति की ओर से आप सभी का हार्दिक स्वागत करते हुए अपार प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इस शीत ऋतु में यात्रा के अनेक कष्टों को सहते हुए आप सभी मनीषी इस सम्मेलन को पूर्ण सफल बनाने हेतु दूर-दूर से पधारे, यह सब आप लोगों का जैनविद्या और इस पावन क्षेत्र के प्रति गहरे अनुराग को प्रकट कर रहा है। महामस्तकाभिषेक के पुनीत अवसर पर विद्वत्सम्मेलन के आयोजनों की प्राचीन परम्परा रही है। इसी परम्परा की शृङ्खला में इस सम्मेलन का आयोजन अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। जैनविद्या के विविध आयामों के विकास हेतु देश के कोने-कोने से पधारे शताधिक जैन मनीषियों. विशाल श्रमण संघों एवं श्रावक समदाय का ऐसा अदभूत मिलन बहत दर्लभता से हआ है। हम सभी इसका लाभ उठाते हुए परस्पर एक दूसरे के द्वारा किये जा रहे अनुसन्धान कार्यों, प्राचीन आचार्यों के मूल ग्रन्थों के सम्पादन/अनुवाद, नये मौलिक साहित्य सृजन आदि कार्यों की जानकारी प्राप्त कर जैनविद्या एवं अपने आध्यात्मिक विकास हेतु संकल्पबद्ध हो सके तो यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। जैन आगमों में कहा है-- जेण तच्चं विबुज्झेज्ज, जेण चित्तं णिरुज्झदि। जेण अत्ता विसझेज्ज तं णाणं जिणसासणे।। अर्थात् जिनेन्द्रदेव के शासन में उसी को ज्ञान कहा गया है जिससे तत्त्वों का बोध होता है, जिससे चित्त का निरोध होता है तथा जिससे आत्मा विशुद्ध होती है। जिनवाणी का यही सार भी है। इस सम्मेलन में जहाँ जैनधर्म की प्राणभूत तीर्थङ्कर-परम्परा, अपने देश का भारतवर्ष नाम देने वाले चक्रवर्ती भरत, महायोगी बाहुबली , श्रुतकेवली भद्रबाहु सहित अन्यान्य जैनाचार्यों आदि के महत्त्वपूर्ण योगदान, साहित्य एवं संस्कृति के विविध पक्षों पर शोध आलेखों एवं परिचर्चाओं आदि के माध्यम से इस सम्मेलन में अनेक नये तथ्यों का उद्घाटन होगा - ऐसा विश्वास है। इस सम्मेलन में सम्माननीय सरस्वती-पुत्रों द्वारा प्रस्तुत होने वाले शोध आलेखों का सार-संक्षेप जैन विद्या के विविध आयाम के रूप में संकलित कर प्रकाशित किया जा रहा है, ताकि सम्मेलन में शोध आलेख प्रस्तुत करने वाले विद्वान् के आलेख का सार निष्कर्ष रूप में सामने आ सके। इस संकलन को प्रकाशित करने o लम्बा श्रम करना पड़ा। प्रूफ रीडिंग आदि तथा सेद्धान्तिक त्रुटियाँ न रहें--इन सब का विशेष ध्यान रखा गया है, फिर भी कहीं न कहीं त्रुटियाँ शेष रहना सम्भव है, अत: ऐसी कमी कहीं दृष्टिगोचर हो तो कृपया उन पर ध्यान आकर्षण कराने का कष्ट करें, ताकि मूल आलेखों के प्रकाशन के समय उन पर विशेष ध्यान रखा जा सके। अनेक तीर्थङ्करों का परिचय तथा अन्य अनेक विषय अभी अवशिष्ट रह गये हैं, जिनका प्रकाशन सम्बन्धित विशिष्ट विद्वानों के आलेखों द्वारा कराने का भाव है। इस सार संक्षेप के प्रकाशन में सभी विद्वानों, गुरूजनों तथा अन्य अनेक मनीषियों का जो आत्मीय सहयोग, मार्गदर्शन और सौजन्य प्राप्त हुआ उसके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। प्रो. फूलचन्द जैन 'प्रेमी'

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