Book Title: Jain Tattva Pradip
Author(s): Mangalvijay
Publisher: Abhaychandra Bhagwandas Gandhi
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चतुर्थीऽधिकारः ।
विहायोगतित्र सवादरपर्याप्तिप्रत्येक स्थिरशुभसुभगसुस्वरादेययशः कीर्तिपर्यवसानाः शुभा निर्माणतीर्थंकराच्चैर्गोत्रैः सहेति पूर्वप्रकृतिविपरीत भूताः पापप्रकृतय इति कथितो वन्धाधिकारः ।
1. आर.
*
१२१
इति ए- एम्-ए-इस्-वीत्युपाधियुक्त शास्त्रविशारद - जैनाचार्य - श्रीमद्द जंयधर्मसूरीश्वरचरणारविन्दभृङ्गायमाणन न्यायतीर्थ न्यायविशारदोपाधियुक्तेन प्रवर्त्तकमङ्गलविजयेन विरचिते जनतत्त्व-
प्रदीपादये प्रन्थे बन्धतत्त्ववर्णननामा
चतुर्थोऽधिकारः समाप्तिं यातः ॥

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