Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 16
________________ दी। उस समय श्री श्री श्री 1008 स्वामी लानचन्द्र जी महाराज भी,पटियाले में ही विराजमान थे। आप प्राचार्य पद देने के पश्चात् अम्बाला और साढौरा की भोर / विहार कर गये। फिर आप साढौरा, अम्बाला, पटियाला, नामा, मलेरकोटला, रामदेकोट, फीरोज़पुर, कसूर, लाहौर होते हुए गुजरांवाले में पधार गए। वहां पर रावलपिंडी वाले श्रावकों की अत्यन्त विज्ञप्ति होने से फिर आपने रावलपिंडी की ओर विहार कर दिया। मार्ग में वजीराबाद, कुंजाह, जेहनम, रोहतास, कल्लर, में धर्मोपदेश देते हुए भाप रावलपिंडी में विराजमान होगये / 1958 का चतुर्मास आपने अपने मुनिपरिवार के साथ रावलपिंडी शहर में ही किया। इस चतुर्मास में धर्मप्रचार बहुत ही हुश्रा / इसके अनन्तर पाप अनुक्रम से धर्मप्रचार करते हुए स्यालकोट में पधार गए। वहां पर भी अत्यन्त धर्मप्रचार होने लगा, वहां के श्रावकवर्ग ने आपको चातुमास विषयक विज्ञप्ति की / फिर भाप श्री जी ने श्रावकवर्ग का अत्यन्त भाग्रह देखकर उनकी विज्ञप्ति को स्वीकार कर 1960 का चतुर्मास स्यालकोट का मान लिया। बीच का शेप काल अमृतसर, जम्बू आदि क्षेत्रों में धर्मप्रचार करके 1960 का चतुर्मास स्यालकोट में आपने किया चितुर्मास में बहुत से धर्मकार्य हुए। धतुर्मास के पश्चात् आप अमृतसर पधारे। वहां पर श्री पूज्य सोहनलाल जी महाराज वा मारवाड़ी साधु श्री देवीलाल जी महाराज वा अन्य साधु वा आर्यिकायें भी एकत्र हुए थे। उन दिनों मे गच्छ में बहुत सी उपाधिये भी वितीर्ण हुई थीं, / उसी समय आपको "गणावच्छेदक" वा "स्थविर" पद से विभूपित किया गया था। इसके पीछे आपने वहां से विहार कर दिया / किंतु आपको श्वास रोग (दमा) प्रादुर्भूत होगया / जिस कारण बहुत दूर विहार करने में बाधा उत्पन्न होगई। तब आपने 1961 का चतुर्मास फरीद. कोट शहर में कर दिया। 1662 का चतुर्मास आपने पटियाले में किया। 1963 का अम्बाला शहर में किया / तब आपके साथ चतुर्मास से पूर्व मारवाड़ी साधु त भी कितना काल विचरते रहे। 1664 का चतुर्मास आपने रोपड शहर मे किया। इस चतुर्मास में जैनेतर लोगो को धर्म का बहुत सा लाभ पहुंचा / नागरिक लोग आपकी सेवा में वृत्तचित्त होकर धर्म का लाभ विशेप उठाने लग गये। किंतु श्वासरोग (दमा) का कई प्रकार से प्रतिकार किये जाने पर भी वह शान्त न हुआ। अतएव आपको कई नगरो के लोग स्थिरवास रहने की विज्ञप्ति करने लगे। किंतु आपने उनकी विज्ञप्ति को स्वीकृत नहीं किया। अपने आत्मबल से विचरते ही रहे / कई वार आपको मार्ग मे वा प्रामो में श्वासरोग का / प्रबल वेग (दौरा) होगया, जिस कारण आपकी शिप्य मंदली को घस्न की टोली

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