Book Title: Jain Tattva Kalika Vikas Purvarddh
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Page 14
________________ H KD REKXC XX DEEXTEEKEEKXXROXER MORADDHADKACHEXXIIXXCIXEMODaniyaSXIISEXDIDIOXg g अपने नानाके घर पसरूर मे ही रहते थे। यह और अन्य कतिपय गृहस्थ वैराग्य भाव M को धारण कर अपने जीवन को पवित्र बनाने के लिये धार्मिक जीवन व्यतीत करने लगे। फिर परस्पर के संसर्ग से सब का ही वैराग्य भाव वढता चला गया। जब सब ने यह ही क्रिया धारण करती तब सबको श्राज्ञा मिल गई। दीक्षाविषय / कुटुम्बियों से श्राज्ञा प्राप्त होते ही प्रसन्नता पूर्वक सबके सब दीक्षा के लिए शहर * से चल पड़े, उन दिनों में श्री श्री श्री 1008 श्राचार्य वर्य श्री पूज्य अमरसिंह जी महा राज अमृतसर में विराजमान थे / श्री दूलोराय जी 1 श्री शिवदयाल जी 2 श्री सोहनलाल जी 3 श्री गणपतिराय जी 4 ये चारों वैरागी पुरुष श्री पूज्य श्रमरसिंह जी महाराज के चरण कमलों में उपस्थित होगए / तव श्री पूज्य ( प्राचार्य महाराज ने चारो को / अपने अमूल्य उपदेश द्वारा और भी वैराग्य भाव में दृढ़ किया / सांसारिक पदार्थों की अनित्यता दिखलाई / जब उन चारी महापुरुषों का वैराग्य भाव उच्च कोटि पर पहुंच गया तव श्री पूज्य महाराज ने उक्त चारी महापुरुषो को 1633 मार्गशीर्ष शुक्ला चन्द्रवार के दिन बड़े समारोह के साथ दीक्षित किया / उन दिनों में श्री पूज्य मोतीराम जी महाराज नालागढ़ में विराजमान थे। तब श्री पूज्य अमरसिह जी महाराज ने श्री गणपतिराय जी महाराज को श्री पूज्य मोतीराम जी महाराज की निश्राय कर दिया / तब आपने उसी दिन से अपना पवित्र समय ज्ञान और ध्यान में लगाना प्रारम्भ किया / / जव श्राप श्री पूज्य मोतीराम जी महाराज के चरणों में उपस्थित हुए तब श्राप साधु क्रिया और श्रुताध्ययन विशेष रूप से करने लगे। विशेष ध्यान प्रापका साधु क्रिया और वैयावृत्य वा गुरु भनि पर था जिस कारण शीघ्र ही गच्छ वा श्री संघ में श्राप सुप्रसिद्ध होगए। आप की सौम्याकृति, नम्रता, साधुभनि प्रत्येक व्यक्ति के मन को मुग्ध करती थी। दीर्घदर्शिता और समयानुसार वर्ताव ये दोनों बाते श्राप की अनुपम थीं। तत्पश्चात् / आपने निन्नलिखित अनुसार चातुर्मास किये जैसे कि-- 1934 का चतुर्मास श्रापने श्री पूज्य मोतीराम जी के साथ अम्बाला जिले के अन्तर्गत खरड़ शहर में किया। 1935 का चतुर्मास आपने बहुत से क्षेत्रों में विचर कर स्यालकोट में किया। 1636 का चतुर्मास आपने श्री पूज्य महाराज के साथ जम्बू शहर में किया। 1637 का चतुर्मास पसरूर शहर में किया। 1638 का चतुर्मास लुधियाना शहर में किया / 1- सम्बत् 1938 में श्रीमदाचार्य श्री 1000 पूज्य अमरसिंह जी महाराज का अमृतसर में स्वर्गवास हो गया था तव श्री सघने 1936 में मालेरकोटला में श्री मोतीराम जी are.mxxx XXEXXXXSAKXC XXEEIXEX

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