Book Title: Jain Tattva Darshan Part 03 Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai Publisher: Vardhaman Jain Mandal ChennaiPage 13
________________ | अर्थ : हे प्रभो ! धूप दुर्गन्ध को हटाकर सौरभ (सुगन्ध) को प्रसारित करता है । और वातावरण को पवित्र बनाता है... उसी प्रकार मेरे आत्मा में रही मिथ्यात्व की दुर्गन्ध दूर हो और सम्यग्दर्शन की सुवास से मेरी आत्मा का एक-एक प्रदेश सुवासित बना रहे । मेरी आत्मा पवित्र बनी रहे। 2015 15. दीपक पूजा का दोहा । द्रव्य दीप सुविवेक थी, करता दु:ख होय फोक । भाव प्रदीप प्रगट हुए, भासित लोकालोक । - अर्थ : हे परमात्मन् ! यह दीपक अंधकार का विनाश करके, प्रकाश फैलानेवाला है। उसी प्रकार इस पूजा के द्वारा, मेरे अज्ञानरूपी अंधकार का नाश हो और ज्ञान का विवेकपूर्ण प्रकाश मेरे आत्म-प्रदेश पर प्रकाशित हो, जिससे सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में पहचान सकूँ। 6. अक्षत पूजा का दोहा -शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल । पूरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल ।। अर्थ : हे प्रभ ! इस चार गति रूप अनंतानंत संसारभ्रमण करके अब मैं थक चुका हूँ । अब आपके प्रभाव से ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप रत्नत्रयी की प्राप्ति कर शीघ्रातिशीघ्र मैं सिद्धशिला पर विराजमान हो सकुं। तथा जिस प्रकार चावल बोने से वापस नहीं उगता, उसी प्रकार हमें भी पुन: जन्म न लेना पड़े । इस हेतु चावल का : साथिया करते हैं। 7. नैवेद्य पूजा का दोहा IYE अणहारी पद में कर्या, विग्गह गई अनंत । Tum दूर करी ते दीजिये, अणहारी शिव संत ।। | अर्थ : हे प्रभो ! विग्रह गति में तो अणहारी पद अनंती बार प्राप्त किया है, | पर उससे मेरी कोई कार्यसिद्धि नहीं हुई । तो अब वह अणहारी पद दूर करके | मुझे हमेशा के लिये अणाहारी पद दीजिये। UE 18. फल पूजा का दोहा mins इंद्रादिक पूजा भणी, फल लावे धरी राग । पुरुषोत्तम पूजा करी, मांगे शिव फल त्याग ।। अर्थ : प्रभु पर भक्ति राग से, इन्द्रादि देव प्रभु की फल पूजा करने हेतु अनेक प्रकार के उत्तम फल लाते हैं और पुरुषोत्तम प्रभु की उन फलों द्वारा श्रद्धा से - पूजा करके, उनसे "जिससे मोक्ष की प्राप्ति रूप फल मिल सके", ऐसे त्याग धर्म की, चारित्र धर्म की मांग करते हैं। अर्थात् मोक्षफल रूपी दान माँगते हैं।Page Navigation
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