Book Title: Jain Tattva Darshan Part 03
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 22
________________ 19. भोजन विवेक : अभक्ष्य त्याग जैन से अभक्ष्य भी नहीं खाया जा सकता क्योंकि इसमें सूक्ष्म और त्रस (हिलते-चलते) जीव बहुत होते हैं। ये खाने से बहुत पाप लगता है, बुद्धि बिगड़ती (मलिन होती) है, शुभ कर्तव्य नहीं हो सकते। परिणाम स्वरूप इस भव में और परलोक में भी बहुत दुःखी होना पड़ता है। माँस, शराब, शहद और मक्खन (छाछ में से बाहर निकालने के तुरंत बाद का मक्खन) ये चारों महाविगई अभक्ष्य गिने जाते हैं। कन्दमूल, काई (सेवाल), फफूंदी इत्यादि भी अभक्ष्य हैं, क्योंकि इसमें अनन्त जीव होते हैं। इसके अलावा बासी भोजन, अचार (पानी के अंशवाला अचार), द्विदल के साथ कच्चा दूध-दही-छाछ वगैरह, दो रात के बाद का दही-छाछ तथा बरफ, आइस्क्रीम, कुल्फी, कोल्ड ड्रिंक्स, वगैरह भी अभक्ष्य गिने जाते हैं। रात्रि भोजन भी नहीं कर सकते। देखिये चित्र 1 उसमें माँस खाने वाला बैल बना है और कसाई द्वारा काटा जा रहा है। अभक्ष्य चित्र 2: मनुष्य शराब पीकर गटर में पड़ा है, उसके खुले मुँह में कुत्ता पेशाब करता है। 20

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