Book Title: Jain Tattva Darshan Part 03
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 51
________________ B. देव भक्ति का सुफल एक मेंढक भगवान् की भक्ति में गद्गद् होकर कमल पंखुड़ी को मुख में दबाकर दर्शन के लिए चल पड़ा। मार्ग में राजा श्रेणिक के सैनिक के घोडे के पैर के नीचे दब गया और शुभ भावों से मरकर स्वर्ग में दर्दुर नाम का देव हो गया। वहाँ से तत्क्षण ही भगवान् के समवसरण में दर्शन करने आ गया। राजा श्रेणिक ने उस देव के मुकुट में मेंढ़क का चिन्ह देखकर श्री गौतम स्वामी से उसका परिचय पूछा। वहाँ सभी लोग देवदर्शन की भावना के फल को सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए। देखों बालकों ! भगवान् के दर्शन की भावना से भी कितना पुण्य बन्ध होता है। कभी भी खाली हाथ से भगवान और गुरु का दर्शन नहीं करना चाहिए। चावल, लौंग, सुपारी, फल आदि चढ़ाकर ही दर्शन करना चाहिए। प्रश्नावली 1. मेंढक कैसे मरा और कहा गया ? 2. दर्शन करते समय क्या चढ़ाना चाहिये ? 3. चित्र में देव कहाँ है और मेंढक कहाँ ? C. कुमारपाल राजा तिलंग देश की यह बात है। एकशिला नामक नगरी में भक्ति के अनुरागी आढर नामक सेठ रहते थे। उनके पास ही भगवान महावीर स्वामी का सुंदर मंदिर था। सेठ सहकुटुंब मंदिर जा कर प्रतिदिन प्रभुभक्ति अच्छी तरह से करते थे । पर्यूषण पर्व का दिन था। आज सेठ ने अपने नरवीर नामक नौकर से कहा, भाई, प्रभु पूजन की संपूर्ण सामग्री तैयार है। हमारे साथ तुम भी चलो, और वीतरागी तीर्थंकर भगवान का दर्शन-पूजन कर पवित्र बनो । सेठजी की बात को सुनकर नरवीर को बहुत आनंद हुआ। इस समय सेठ के यहाँ कर्म की विचित्रता 49

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