Book Title: Jain Tattva Darshan Part 03
Author(s): Vardhaman Jain Mandal Chennai
Publisher: Vardhaman Jain Mandal Chennai

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Page 19
________________ A. वरदत्त दो भाई थे और दोनों ने दीक्षा ली। बड़ा भाई बहुत बुद्धिमान था । इसलिये हर वक्त पढता रहता था। दूसरा भाई बिलकुल अनपढ़ था । इसलिये हर वक्त सोया रहता था। दूसरे भाई को आनंद की नींद लेते देखकर बड़े भाई के मन में विचार आया- मैं क्यों होशियार बना, मैं भी अनपढ़ रहता तो आराम से सोता। एक दिन बड़े भाई ने सोचा, मैं भी आज सोता ही रहूँगा और वह सोने की तैयारी कर रहा था। इतने में एक महात्माजी प्रश्न पूछने आये, उनको जवाब दिया उतने में दूसरे महात्माजी आये, इस प्रकार एक-एक करके प्रश्न पूछने आने लगे । आखिरकार उन्हें गुस्सा आ गया और कहा - " मैं छ: महीने तक किसी को नहीं पढ़ाऊँगा ।" फिर पश्चाताप हुआ और उसने सोचा कि यह तो मैंने ज्ञान की बड़ी विराधना की है । वहाँ से आयु पूर्ण कर उन्होंने राजा के घर जन्म लिया। पर ज्ञान की विराधना के कारण अंधे-लूलेलंगड़े बने । B. गुणमंजरी सिंहराजा की रानी कपूरतिलका ने गुणमंजरी पुत्री को जन्म दिया। वह जन्म से ही गूंगी एवं रोगग्रस्त थी। सर्व प्रकार के सुख थे फिर भी पुत्री की ऐसी हालत देखकर राजा, आचार्य श्रीमद् विजय सेन सूरीश्वरजी गुरु भगवंत के पास गये । उपदेश सुनकर उनसे अपनी पुत्री के दुःख का कारण पूछा। तब गुरु भगवंत ने उस पुत्री का पूर्वभव सुनाया। खेटक ग्राम में जिनदेव के पाँच पुत्र और चार पुत्रियाँ थी । पुत्रों को ज्ञान नहीं चढता था। इसलिये स्कूल में पंडितजी मारते थे। बच्चों ने माँ के पास पंडितजी की शिकायत की। माँ को पंडितजी के ऊपर गुस्सा आया। पंडितजी का अपमान किया और सब किताबें अग्नि में डालकर जला दी। बच्चों की स्कूल छुड़वा दी। बच्चे जब बड़े हुए तो अनपढ़ होने के कारण कोई कन्या उनसे शादी करने को तैयार नहीं थी । तब पिता ने बच्चों को अनपढ़ रखने का कारण - माता को जानकर उनकी माँ को क्रोध से मार डाला। वह माता ही मरकर गुणमंजरी बनी है। यह सुनकर गुणमंजरी को जातिस्मरण ज्ञान हुआ। ज्ञान की आराधना की, रोग गया। महाविदेह क्षेत्र में चारित्र लेकर मोक्ष गई। 17

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