Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08 Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal View full book textPage 6
________________ (v) ये खूसठ वृढा नहिं मरता जाने कब तक जीवेगा ॥ हृदय फटा जाता है मेरा सुन सुन तीक्षण वानी को || हाय०१५ || मन मे था उत्साह पास मे पैसा तरुण अवस्था थी, सब मेरे खाने पीने की घर में ठीक व्यवस्था थी । तब न किया आतम हित मैने भोगो मे फस जाने से, चोर निकल भागा घर से फिर क्या हो शोर मचाने से || खडा शीग पर काल लूटने इस नरभव रजधानी को कहते थे गुरु देव बार बार में समझा नहि समझाने से, धर्म प्राप्ति का उपाय सीखा नही सिखाने से । चिडियाँ चुग गयी खेत अरे अब कहा होता पछिताने से । वीता समय हाथ नही आता गीत पुराने गाने से ॥ भय्या छोडि चलो अब जल्दी इस झोपड़ी पुरानी को ॥ हाय ० १७ ॥ ||हाय०१६ ॥ मोक्षमार्ग प्रकाशक से उभयाभासी की प्रश्नोत्तरी प्र० १ - सातवाँ अधिकार किसके लिये लिखा गया ? प्र० २ - जैन कितने प्रकार के होते है ? प्र० ३ - सधैया जैन होने पर, जिनआज्ञा मानने पर निरन्तर शास्त्रो का अभ्यास होने पर, तथा सच्चे देवादि को मानने पर भी सम्यक्त्व क्यो नही होता है ? प्र० ४ - जिनआज्ञा किस अपेक्षा है इसको जानने के लिये क्या जानना चाहिए ' ? प्र० ५ - निश्चय किसे कहते है प्र० ६ - व्यवहारनय किसे कहते है ? प्र० ७ - यथार्थ का नाम निश्चय के तीन बोल क्या-क्या है ? प्र० ८ - उपचार का नाम व्यवहार के तीन बोल क्या क्या है क्यो कहा है क्यो कहा है प्र० ε-ज्ञायक स्वभाव को यथार्थ नाम निश्चय प्र० १० - युद्ध पर्याय को यथार्थ का नाम निश्चयPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 319