Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 08 Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal View full book textPage 5
________________ ( 1 ) जोश जवानी का रंग फीका पड़ने लगा पचासा मे, साठि वरष का शठ कहलाया इस जीवन की आशा मे । सत्तर मे सब कहने लगे हत्तेरे की धुत्तेरे की, वेही करने लगे बदी जिनके सग मे थी नेकी | अपने हये विगाने अब तो करिक खैचातानी को || हाय० १०॥ सत्तर के लगभग अब तन पर सही बुढापा छाया है, किधो काल ने मुझे पकडने को यमदूत पठाया है । पग वृटा दो हालन लागे चरखा हुआ पुराना है, बिगड गई पेट की आतडिया होता हज्म न खाना है । सभी रोग आये करने मुझे बूढे की मिजमानी को || हाय० ११॥ गीग भया सब श्वेत मुरादाबादी जेम पतीली है, बैठि गये है गाल बदन की खाल भई सब ढीली है । रौनक जाती रही भई चेहरे की रगत पीली है, टप टप टपकै नाक सिनक से मूछे रहती गीली है ।। हसते है सब आख देखि अँधी चुन्दो धुधलानी को || हाय० १२ ॥ टूटि गये सब दाँत वना मुह साँपो का भट्ट सा है, बोला जाता नही ऐठि करि जीभ बनी ज्यो लठ्ठा है । खासत खासत घडक उठा दिल बलगम हुआ इकट्ठा है, अग अग मे वायु भरी सब चीखत रंग रंग पट्ठा है ॥ अरे करू कैसे में सीधी अब इस कमर कमानी को । हाय ० १३ ॥ जो करते थे प्यार वही अब टेडी आख दिखाते है, नारि यार परिवार सुता सुत भाई पास न आते है / खाना पीना औपधादि भी नहीं समय पर मिलती है, हाथ पाव असमर्थ हुये कमबख्त नाकाया हिलती है ॥ पडा खाट पर काट रहा इस मौति सदृश जिन्दगानी को || हाय ० ॥ जो धन माल पास था मेरे सबने मिल फिर भी मैं इनकी आँखो मे खटक गाली दे दे कहते मुझ से खून कर बाटा है' जैसे कॉटा है । हमारा पीवेगा,Page Navigation
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