Book Title: Jain Siddhant Pravesh Ratnamala 03
Author(s): Digambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
Publisher: Digambar Jain Mumukshu Mandal

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Page 3
________________ जैन सिद्धान्त प्रवेश रत्नमाला ( तीसरा भाग) प्रस्तावना सन् १९६६ श्रावण मास में प्रथमवार, पं० कैलाश चन्द्र जी बुलन्दशहर वालों की शुभ प्रेरणा से हम को अध्यात्म सत् पुरुष श्री कांजी स्वामी के दर्शन हुए। जगत के जीव दुःख से छूटने के लिए और सुख प्राप्त करने के लिए सतत् प्रयत्नशील है। परन्तु मिथ्यात्व के कारण जगत के जीवों के समस्त उपाय मिथ्या हैं। सुखी होने का उपाय एकमात्र अपने शुद्ध स्वरूप की पहिचान उसका नाम सम्यग्दर्शन है। ऐसे सम्यग्दर्शन का उपदेश ही श्री कांजी स्वामी के प्रवचनों का सार है। हमें लगता है भव्य जीवो के लिए इस युग में श्री कांजी स्वामी के उपकार करोड़ों जबानों से कहे नहीं जा सकते है। सोनगढ़ में श्रीखेम चन्द भाई तथा श्री राम जी भाई से जो कुछ हमने सीखा पढ़ा है उसके अनुसार श्री कैलाश चन्द्र जी द्वारा ग्रंथित प्रश्नोत्तर का हमने बारम्बार मनन किया तो हमें ऐसा लगा कि हमारे जैसे तुच्छ बुद्धि जीवों की बहुलता है । अपना हित करने में निमित्त रूप से प्रश्नोत्तर के रूप में जैन सिद्धान्त प्रवेशरत्नमाला तीसरा भाग बहुत ही उपयोगी ग्रंथ होगा। हमने पडित कैलाश चन्द्र जी से इस ग्रंथ को छपा देने की इच्छा व्यक्त की। उनकी अनुमति पाकर, मुमुक्षुओं को सद्मार्ग पर चलकर अपना आत्महित करने का बल मिले ऐसी भावना से यह पुस्तक आपके हाथ में है। इस पुस्तक में कार्य की स्वतंत्रता बताने के लिए विश्व द्रव्य, गुण और पर्याय का विशेष स्पष्टीकरण किया है

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