Book Title: Jain_Satyaprakash 1947 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્યપ્રકાશ [ १२ [१] महाराणा साहेबके भाषणका हिन्दी भाषान्तर ___ मेवाड़ की अपनी समस्याएँ है । यह धर्मस्थानों, मंदिरों और सदावतों को भूमि है, जिनको हमारे पूर्वजों की अनेक पीढ़ियों ने तथा मेवाड़ और भारत के अन्य भागों के श्रद्धालु दाताओं ने स्थापित किया है और जिनके कारण आकर्षित होकर सारे भारत से यात्री यहां भाते रहे हैं। अतः एक दृष्टि से मेवाड़ भारत का तीर्थस्थान है। मन्दिर, भूमि और भन्य प्रकारके दान जो अब तक राज्य के बजट के बाहर एक अलग निधि (ट्रस्ट) के रूप में देवस्थान विभागों में रहते आये हैं, वे शताब्दियों से आर्य-धर्म के पोषणकेन्द्र रहे हैं। अब वे सरकार के क्षेत्रके बाहर एक दृढ़ और अचल आधार पर रख दिये गये हैं। इन सब मन्दिरों, सदावतों और अन्य प्रकार के दानों को एकत्र कर "श्री देवस्थाननिधि" के नाम से एक निधि ( ट्रस्ट) के रूप में वैधानिक गण ( कोर्पो रेशन ) का स्वरूप दे दिया गया है जिसकी अपनी मुद्रा ( Seal ) होगी। किसि समय मेवाड़ ज्ञानकी भूमि रहा था, और उसके मन्दिरों के प्राङ्गणों में अपनी विविध शाखाओं सहित हिन्दू शास्त्रों का अध्ययन और विकास किया जाता रहा था। इस उद्देश्य को आधुनिक परिस्थितियों के अनुकूल पुनः स्थापित करने के लिये विधान में यह रखा गया है कि " श्री देवस्थाननिधि" एक शिक्षण केन्द्र से सम्बद्ध रहे, जो महाराणा प्रताप के नाम से हो और जिसके द्वारा मेंवाड़ एकबार फिर प्रकाशमान हिन्दू संस्कृति का केन्द्र हो जाय, जिसकी रक्षा के लिये हमारे पूर्वजों और हमारे वीर प्रजाजनों की पीढ़ियों ने अपने जीवन का उत्सर्ग किया है। यह विश्वविद्यालय हिन्दी माध्यम द्वारा काम करेगा और अन्यान्य उद्देश्यों के साथ इसका उद्देश्य संस्कृत वाङ्मय के उच्च अध्ययन और आयुर्वेद के उच अभ्यासक्रमों की स्थापना का होगा, जिनको हम भारत में शिक्षणकी आधारभूत आवश्यकताएँ मानते हैं। विश्वविद्यालय में दिये जाने वाले शिक्षण का आर्य-धर्म का शिक्षण एक अविभाज्य अङ्ग होगा। इस विधान द्वारा " श्री देवस्थाननिधि " और प्रताप विश्वविद्यालय दोनों को स्वायत्तता ( Autonomy ) प्रदान कर दी गई है। " श्री देवस्थाननिधि "के विश्वस्त (टस्टी) विश्वविद्यालय की प्रथम शासन समिति या परिषद होंगे। इस विश्वविद्यालय को शिक्षण का अखिल भारतीय केन्द्र बनानेकी दृष्टि से हमने जीवन के अनेक कार्यक्षेत्रों में लब्ध प्रतिष्ठ व्यक्तिओंको " श्री देवस्थाननिधि" और प्रताप विश्वविद्यालय परिषद के प्रथम विश्वस्त (टूस्टी ) होने के लिये निमन्त्रित किया है। हमें हर्ष है कि अन्यान्य विश्वस्तों (ट्रस्टियों) में से श्रीमान् महेन्द्र महाराजा सर यादवेन्द्रसिंहजी, पन्ना नरेश, भारत सरकार के मंत्री माननीय डा० श्री राजेन्द्रप्रसाद तथा शेठ श्री जुगलकिशोर बिड़ला ने देवस्थाननिधि के सदस्य होनेके हमारे आमंत्रण का स्वीकार किया है। हमें घोषित करते हुए प्रसन्नता होती है श्री कन्हैयालालजी मुन्शीने हमारे निमन्त्रण पर सद्भावपूर्वक " श्री देवस्थाननिधि " का प्रथम अध्यक्ष और प्रताप विश्वविद्यालय का पहला उपकुल पति (वाइस चान्सलर) होना स्वीकार किया है। For Private And Personal Use Only

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