Book Title: Jain_Satyaprakash 1941 01
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१९४] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [१५१ महाराजा साहबने हिन्दुमलजीको महारावका खिताब प्रदान किया और आपके घर पधारकर मोतीयोंका हार इनायत किया । वि. सं. १८९१में महाराजा रत्नसिंहजीके पास गवर्नर जनरलके एजंट कर्नल एल्विसका इस आशयका खरोता आया कि सीमा सम्बन्धी निर्णयके लिए आप मुझसे मिले । इस अवसरपर महाराजा साहबने अपनी ओरसे महाराव हिन्दुमलजीको गवर्नर जनरलको सेवामें भेजा। बीकानेर रियासतकी ओरसे अंग्रेज-सरकार को २२००० रुपये फौजी खर्चके लिये प्रति वर्ष देनेका इकरार था। महारावजीने बहुत कोशीश कर यह रकम अंग्रेज सरकारकी ओरसे माफ करवा दी । वि. सं. १८९६ में उदयपुर में महाराणा सरदारसिंह आपके बुद्धिमत्ताके कार्योको देखकर बहुत चकित हुए और उन्होंने महाराजा रत्नसिंहजीसे महाराव हिन्दुमलजीकी सहायता चाही, जिसका महाराजा साहबने सहर्ष स्वीकार किया। वि. सं. १९०४ में लुटेरोंको सहायता देनेका झुट दोषारोपण अखबारों द्वारा हिन्दुमलजीके उपर किया गया, जिससे आप अपनी निर्दोषिता प्रमाणित करनेके लिए गवर्नर जेनरलकी सेवामें शिमले गये। वहां आपकी तत्कालीन वाइसराय महोदय मि. हार्डिजसे मुलाकात हुई । इस पर वायसराय महोदय मि. हार्डिजने आपके कार्यों पर प्रसन्न होकर आपको खिलअत प्रदान की। इस समयके पत्रका सारांश नीचे दिया जा रहा है:--- “सन् १८४६ की ३री मई को राइट आनरेबल गवनर जनरल लार्ड हाडिज शिमला दरबारके वक्त मेहता महाराव हिन्दुमल दीवान बिकानेरसे मिले और खिल्लत बक्षी । श्रीमानने उनके ओहदे और सचरित्रके मुताविक इन्जतके साथ वर्ताव किया।" * सं. १९०४में कर्नल सदरलैंडके बीकानेर पधारने के ममय महाराजा रत्नसिंहजीके मना करने पर भी हिन्दुमलजी बीमारीकी हालत गजारूढ होकर महाराजा साहबके साथ उनकी पेशवाई को गये । वापिस आते समय आपकी दशा अत्यधिक खराब हो गई और महल के फाटसके पास पहुंचते पहुंचते आप मूर्छित हो गये। फिर आप बडी हिफाजतके साथ महलके भीतर लेजाये गये । दिन पर दिन आपकी हालत चिन्ताजनक होती गई और चंद ही दिनों के बाद ४२ वर्षकी अवस्थामें आप जैसे रत्नको मृत्युने आ घेरा और आप स्वर्गवासी हो गये। __ आपके स्वर्गवास पर महाराजा साहबने एक खास रुक्का भेजकर आपकी असामयिक तथा दुःखद मृत्यु पर अफसोस प्रकट किया और सहानुभूति * ओसवाल समाजके इतिहास पृ. १६९ से। For Private And Personal Use Only

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