Book Title: Jain Satyaprakash 1940 11 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१५६ [१२] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ संपण्णो साहुत्तं, अडवी निवसणकउग्गसुहनियमो । विहरंतो संपत्ती, पारणसमयम्मि वरसमओ ॥ १० ॥ रहगारस्स समीचे, सुपत्तदाणुज्जुयस्स भव्धस्स । दायगगाहगकिरियं, अणुमोएए मिओ मोया ॥ ११ ॥ धण्णोऽयं कयपुण्णो, रहगारो देह जो महादाणं । होतोऽहं जइ मणुओ, देतो दाणं तया मुहओ ॥ १२ ॥ एत्यंतरम्मि पुण्णं, आऊ तिण्हपि बंभदेविडिं । पत्ता ते तमिणं ता, चउण्ड माइम्मि संकहियं ॥ १३ ॥ हाणी सीलाईणं, जाया कमसो ण दाणमाणस्स। उसभेणं जं दिण्णं, सम्वेहिं जिणेहिं तम्माण ॥ १४ ॥ दाणं ममयाहरणं, सुग्गइसंपायणं महोदययं । जस कित्तिविजयसंति, देइ कुणइ वेरविषणं ॥ १५ ॥ कुवियं व सध्यकटुं, णो तेसिं सम्मुहं वि पासेह । जे देन्ति सुपत्ताणं, दाणं हिटेण हियएणं ॥ १६ ॥ दासिव्व सिरी गेहं, पयवडिया णो चएइ परितुठ्ठा । सोहग्गाइयसुगुणा, देहं मिल्लेइ णो तेसिं ॥ १७ ॥ .. तिणि गई विक्खाया, धणस्स दाणं च भोगणिण्णासा। सहाणभागवियलं, दविणं होजा विणासरिहं ॥ १८ ॥ चउरो धणदायाया, धम्मग्गी भूवतकरा बंधू । चउसु षि जिठो धम्मो, जहणो तस्सावमाणाओ ॥ १९ ॥ कुप्पंति तओ तेणं, धणविणिओगो करिज जहसति । सत्तसु खित्तेसु मुया, अणिञ्चयाभाविभव्धेहिं ॥ २० ॥ जिणगेहबिंबनाण, चउविहसंघो त्ति सत्तखिताई। सुहवित्तम्मि व बीयं, होज धणं सहलमेएमु ॥ २१ ॥ For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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