Book Title: Jain Satyaprakash 1940 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मूलाचार [ दिगंबर मुनिओंका एक प्राचीन व प्रधान आचारशास्त्र ] लेखक - मुनिराज श्री दर्शन विजयजी [ गतांक से क्रमशः ] श्रुतवली श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने १० नियुक्तियां बनाई । उनमें षड्आवश्यक नियुक्ति भी एक है । आवश्यक नियुक्ति में सब मिलकर १६२३ गाथा हैं । षडावश्य मूल, नियुक्ति गाथा १६२३, और भाष्य गाथा २५३ के उपर श्री हरिभद्रसूरिजीने २२००० श्लोक प्रमाण टीका बनाइ है । जो सम्पूर्ण ग्रंथ मुद्रित हो चुका है । श्रीमद् वट्टेरक आचार्यने इस सारे ग्रन्थको उठाकर ७वें परिच्छेद में दाखल कर दिया है । बहुतसी गाथाएं असली रूपमें ही रख दी हैं। जहां जहां दिगम्बरपने में नुकसान लगा या अर्थसंकलनाके निमित्त संक्षिप्त विभाग बनानेकी परिस्थिति खडी हुई वहां तिन दो वा एक चरण (श्लोकका पद) को ही उठाया या सारांश ले लिया । स्वयं ग्रन्थकार ने भी अन्तिम गाथासे कबूल किया है कि मैंने णित्तीका संक्षेप करके यह नियुक्ति की है ( गा० १९३), माने यह परिच्छेद आवश्यक नियुक्तिका सार ही है । आवश्यक नि. गा ८७ ९१८ मैं यहां पर जांच करनेवालेकी आसानीके लिए दोनों शाखकी गाथायें आमने सामने अंकित करता हूं मूलाचार आ. गा. नि. गा. ७९६ ९२२ (९२३) ९२३ ९५३ (९५४) ९९५ १००२ www.kobatirth.org (१०१०) ९२६-९९२ ८७ १३२ - १५२ २ ३ ४ ७९२-से७९५ ( भा. १४९ ) ७९७ ७९८ ५ ६ ७९९ ७ ८०१ ८ १२४६ ११ १२ १३ १६ १७ (१२४८) भा. १९० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र १-६ १०५८ १०५७ मृ. गा. आ. गा. १८ भा. १९५ भा. १९७ २१ भा १९९ २३ भा. २०१ २४ भा. २०२ २५ ३३ ३४ ३६ ३७ ४१ १०५९ १०६० १०६२ १०६१ १०६३-१०६४ १०६५ ર १०६६ ४३ १८६९ १०७६ ४४ For Private And Personal Use Only मृ. गा. ४७ .४९ ५२ ५३ ५५ ५६ ५८ ५९ ६० ६१ ६२ • ६३ ६४

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