Book Title: Jain Satyaprakash 1940 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१०] શ્રી જેને સત્ય પ્રકાશ आवश्यक अंश इस प्रकार है "...तेजलदे नाम्न्या । निजपति सौणिक तेजपाल प्रदत्ताज्ञया । प्रभूतद्रव्यव्ययेन सभूमिगृहश्रीजिनप्रासादः कारितः कारितं च तत्र मृलनायकतया। स्थापना कृते श्री विजयचिन्तामणिपार्श्वनाथबिंबं प्रतिष्ठितं च । (देखो सूरीश्वर अने सम्राट् पृ० २५९) इससे यह तो साफ़ प्रकट है कि उक्त श्रीपार्श्वनाथजी परिकर सहित प्रतिष्ठित न हुए थे तब इस समय में जो परिकर उपलब्ध हुआ है वह इन्हीं का न हो? और उक्त मूलनायकजी के पास वेदी में इतनी जगह न होगी जो यह वहां विराजमान कर दिया जाता । अतः यह परिकर वहीं माणेकचौक में दूसरे स्थान में अन्यान्य मूर्तियां सहित विराजमान किया गया और अधिक संभव है कि जिस स्थान पर अब यह उपलब्ध हुए हैं मूल भी यहीं पर विराजमान किए गए होंगे जो कि कालकी विकराल गति से स्थानके ढह जानेसे अब इस प्रकार से उपलब्ध हुए हैं । श्रीविजयप्रशस्तिकाव्य सर्ग १९ श्लोक ५७ से ६० तक में उल्लेख है कि गु. सं. १६६१ में ] श्रीविजयसेनसूरिजी का चौमासा खंभात में था । अतः उक्त मंदिर की तो प्रतिष्टा उन्होंने अवश्य ही कराई, परन्तु इस परिकर की प्रतिष्ठा के समय में हिंदी सं. १६६९ और १६७० में उनके चौमासे क्रमशः देलवाडे और नवानगर में थे [सर्ग २१ श्लोक २१ से ३१ तक], क्योंकिइस परिकर का लेख चतुर्मास प्रारंभ होने से केवल एक दिन पहिले का है, अतः वास्तव में पं. श्री मेरुविजयजी ने इसकी प्रतिष्ठा [खंभात में ] की थी। जिन लेखों में वार नहीं होते उनके विषय में अन्य साधनों के विना यह निर्णय नहीं किया जा सकता कि वे हिन्दी गणना के है या गुजराती गणना के, बल्कि कभी कभी तो वार सहित लेखों की भी पद्धति:का निर्णय करना अशक्य हो जाता है, अतः इस विषय में मौनावलम्बन करना पड़ता है । यद्यपि आपने उक्त लेखका अक्षरार्थ ठीक किया है कि 'मेरुविजय प्रणाम करते हैं' । परन्तु असल में इसके प्रतिष्ठापक वे ही थे । इस प्रकार के बहुत से लेख उपलब्ध हैं [ देखो उना और शत्रुजयपर श्रीहीरविजयसूरिजी को पादुका के लेख व 'श्री जैन सत्य प्रकाश' क्रमांक ५८ पृ० ३६० आदि आदि । For Private And Personal Use Only

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