Book Title: Jain Satyaprakash 1940 11
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [<<] શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ [वर्ष यहांके मनुष्य चौथे देवलोकसे और दूसरी नारकीसे ज्यादा ऊंचे नीचे नहीं जा सकते । समचतुरस्र, न्यग्रोध, सादि, वामन, कुब्ज और हुण्डक-ये संस्थाननाम कर्मक छे भेद है । पद्मासन लगाकर बैठे हुए आदमीके सिरसे पांवका अधस्तल भाग जितना लंबा हो उतनी ही एक गोडेसे दूसरे गोडे की लंबाई, और बांये स्कन्धसे दाये गोडेकी और दाये स्कन्धसे बांये गोडेकी लम्बाइका नाप निकले तब समझना कि यह मनुष्य समचतुरस्र संस्थानवाला है । यह आकृति बडी सुन्दर होती है। तीर्थकर, गणधर और देव ऐसी आकृतिवाले ही होते हैं। दूसरा न्यग्रोध-उपरसे अच्छी आकृति होती है और नीचे से खराब । तीसरा सादि-नीचेसे सुरम्य होकर उपर से बेडौल शरीरबालेका सादि संस्थान कहा जाता है। हाथ, पांव वगैरह लक्षणयुक्त होने पर भी छाती, पीठ वगैरह बीगडे हुए शरीरकी आकृति को बामन कहते हैं। छातीपीठ अच्छे हों और हाथ-पांव बिगड़ जाये, इस अवस्थाकी रचना कुब्जसे होती है । और सब ही अंग-प्रत्यंग बेडौल बने रहते हैं, यह कार्य हुंडक संस्थानका है। संस्थानकी छ प्रकृति, आकृतिका सौंदर्य और कुरूपतारूप कार्यकी करती हैं। वर्ण, गन्ध रस और स्पर्श ये चार नामकर्म रंग, गन्ध, रस और स्पर्शको बनाते हैं । वक्रगतिमें पड़े हुए जीवोंको नरक, तिर्यच, मनुष्य और देवगतिमें पहुंचानेवाले कर्म, नरकानुपूर्वी तिर्यचानुपूर्वी, मनुष्यानुव और देवानुपूर्वक नामसे कहे जाते हैं । हाथीकी तरह सुन्दर चाळ और गंडे की तरह खराब चालको देनेवाले कर्मको शुभ और अशुभ खगति कहते हैं । पराघात नाम कर्मसे जीव, राजसभा के सभासदों में भी ओभ नहीं पाता, बल्कि उसे देखकर दूसरेको क्षोभ होता है । उच्छवास नामकर्म श्वासोश्वास अच्छी तरहसे ले सकता है । आतंप नामकर्म से are faarनके एकेन्द्रिय जीवोंके कलेवर ठंडे होने पर जगत पर गर्मी फेंकते हैं । उद्योत नामकर्मसे चन्द्र के विमानके एकेन्द्रिय जीव शीतल प्रकाश दे रहे हैं। यह कर्म देव यति उत्तर बैक्रिय बनाते हैं उनमें भी रहता है | अगुरुलघु नामकर्म से शरीर भारो और हलका नहीं रह कर Rafaeer होता है। तीर्थंकर नामकर्म जीवको तीन जगत में पूज्य बनाकर अशोकवृक्ष, सुरपुष्पवृष्टि. दिव्य ध्वनि, चामर सिंहासन, भामंडल, दुंदुभी और सीरपर तीन छत्रसे विभूषित बनाता है । यही भगवान् जिनशासन की स्थापना करते हैं, और जगतको द्वादशांगीका संदेश सुना जाते हैं । निर्माणनामकर्म आँख, कान, नाक आदिका यथास्थान स्थापन करता है । उपघात नामंकर्म अपने ही प्रति जिह्वा आदि अवयवोंसे अपने हीं अवयत्र को हरकत करता है । स नामकर्ममे जीव हलन चलन की शक्ति धारण For Private And Personal Use Only

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