Book Title: Jain Satyaprakash 1937 05 SrNo 22 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૫૧૪ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ વૈશાખ न हि प्रयोजनमन्तरेण मन्दोऽपि प्रवर्तते किंपुनः मूत्रकृतो भगवन्तः । __ प्रयोजन सिवाय मन्द माणस पण प्रवृत्ति नथी करतो तो सूत्रकार भगवान् तो करेज शानी ? अर्थात् तेमनी प्रवृत्ति तो जरूर प्रयोजन वाळी ज होय, माटे उपर्युक्त व्यक्तिने बे वार आहार जणाववामां शुं प्रयोजन समायेल छे तेनो आपणे विचार करीए प्रथग आचार्य भगवान् के जेओ शासनना राजा छे, जेमना पर शासनसाम्राज्यनी धुरा निर्भर छे, तेओश्रीने इतरदर्शनना आक्रमणथी जैनेन्द्रशासनने अबाधित राखी विश्वव्यापी बनाव, राजादि विद्वान् वर्गने जैनधर्मनां अमोलां सुभाषितो समजावी तेमने वीतराग शासन प्रत्ये प्रेमाळु बनाववा, संवनी धार्मिक परिस्थिति जाळववी, मुनिगगने वांचना आपवी, सारणा वारणादि करवां वगैरे वगेरे अनेक प्रकारनो शारीरिक अने मानसिक बोजो होय छे । आ बोजाने अंगे तेओश्रीना शरीरने वधारे घसारो पहेांचवानो सम्भव छे, अने तेमना शोर पर धार्मिक जनता अने धार्मिक कार्यनो आधार छे । हवे एक वार ज आहार करवाथी आ शरीर ग्लानि पामतुं होय तो बे वार पण आहार करीने शासनधुरा अग्लान भावे वहन करे, आटला माटे बे वार आहारनी जरूरतमां तेओश्रीनुं नाम आपेल छे। आमां पण कोई विशिष्ट संघयणवाळा होय अथवा विशेष बोजो न होय अने एकवारना आहारथी निर्वाह चलावी शकता होय तो एक बार वापरीने पण चलावी ले, पण आचार्यने बे वार वापरतुं ज जोईए एम काई शास्त्रकार भगवान् फरमावता नथी । बीजा उपाध्यायजी महाराज के जेओ शासनसम्राट् आचार्यना युवराज स्थानापन्न छे, भावि आचार्य पदने योग्य छे, जेओ आचार्य स्थाननी तालीम लई रह्या छे, तेओने पण मुनि समुदायने सूत्रो भणाववां वगेरे अनेक कार्यनो बोजो होय छे, जेने अंगे तेमन पण आचार्यनी जेम बे वारमा नाम आपवामां आवेल छ । आमां पण एकवारथी जो निर्वाह थतो होय तो एकवारथी पण चलावी ले । त्रीजा तपस्वी के जेओने विशेष तपस्याने अंगे जठराग्नि मन्द थाय ते म्वाभाविक छे. अने मन्द जठराग्निमां एको साथे वापरेलो आहार कदाच विकृत थइने ताव, झाडा, उलटी के वातप्रकोप वगेरेने करे, जेथी एकी साथे नहि वापरता प्रथम थोडं वापरी जठराने प्रगतिमा लावीने पछीथी वापरे । आवां कारणोने अंगे तपस्वीनु पण बे वारमा नाम आपेल छे, आमां पण कोई एक वारथी निर्वाह चलावी शकता होय तो एक वार पण वापरे । चोथा ग्लान के जेओ रोगथी ग्रस्त छे, अने रोगी अवस्थामां जठराग्नि मन्द होय ए स्वाभाविक छे । आ मन्द जठराग्निमां सर्वथा आहारनो त्याग कराय तो ते विशेष मन्द थाय अने शरीर विशेष क्षीण थई जवाथी धर्मध्यान साचवQ मुक्केल थई पड़े, कदाच एक ज वार थोडो आहार लेवाय तो आखो दिवस ते चाली शके नहि, अने क्षुधाथी For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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