Book Title: Jain Satyaprakash 1937 05 SrNo 22 Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૧૯૯૩ સમીક્ષાભ્રમાવિષ્કરણ ૫૧૫ पीडित थाय | कदाच एकी वखते ज बधो आहार लेवाय तो ते विकृत थईने अनेक जातना दोषो पैदा करे, अने बेवार लघु भोजन करवामां आवे तो उपर्युक्त दोष नहि श्रुता गुण पैदा था, आवा मुद्दाथी ग्लानने बे वारसां गणान्या छे । आमां पण कोई एकवार आहारथी उपर्युक्त दोषन परिहार करी शके तो एकवार वापरीने पण चलावी ले । पांचमा वेयावच्च करनार के जेने आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी अने ग्लान वगेरेनी वेयावच करवानी होय छे । जेने अंगे शारीरिक परिश्रम विशेष पडे ते स्वाभाविक छे। अने विशेष शारीरिक परिश्रमवाळाने खाधेल आहार जलड़ी पची जाय अने पाछी क्षुधा आवीने उपस्थित थाय ए पण अनुभवसिद्ध है । आझुवानी निवृत्तिने अर्थं बीजी चार आहार लईने पण क्षुधा वेदनीयनी शान्ति करीने वेयावचने साधे, आवा मुद्दाथी वेयावच्च करनारनुं नाम बे वारमा आपवामां आबेल छे । आमां पण कोई विशिष्ट संघपण वाला होय अने एकवारथी चलावी शकता होय तो एकवारथी पण चलावी ले, अन्यथा बेवर पण आहार ले । आ बाबतमां जुओ टीकाकार महाराजनां वचनो 1 66 97 ते तु एकवारं भुक्तेन वैयावृत्त्यं कर्तुं न शक्नुवन्ति तदा द्विरपि भुञ्जते भावार्थ यावच करनारा एकवार खाघेला आहारथी वैयावच करवा समर्थ न थकता होय तो बेवार पण आहार वापरे । छठा क्षुल्लक अने सातमी क्षुल्लिका अर्थात्- बाल साधु अने बाल साध्वी । जेम जेम शरीरना बांधानी विशेष मजबुतता तेम तेम आहारना कालनुं विशेष अन्तर, अने जेम जेम शरीरनी शिथिलता तेम तेम आहारना कालनुं अल्प अन्तर होय छे। आ नियमे वैक्रिय शरीरने पग छोड्यां नथी । वैकिय शरीरधारी देवगणमां सौथी वधारे मजबुताई बाळु शरीर अनुत्तरवासी देवोने होय छे, के जेने तेत्री सागरोपम जेवा लांबा काल सुधी एक ज स्थितिए शरीर राखवा छतां पण लेशमात्र परिश्रम लागतो नथी । आ अनुत्तर देवाने नीचेना देवो करता आहारना ( लोमाहारना ) कालनुं विशेष अन्तर होय छे, अने नीचे नीचेना देवोने तेना करतां अल्प अन्तर होय छे, अर्थात् वेलो वेलो आहार लेवो पडे छे । आवी रीते प्रथम आराना युगलियाने शरीरनुं विशिष्ट बन्धारण होवाथी ऋण त्रण दिवसने आंतरे आहार लेवाना होय छे, अने बीजा आराना युगलियाने तेना करतां काई मजबुताईवालुं शरीर होय छे तेथी बब्बे दिवसने आंतर आहार लेवानो होय छे। आवा ते ऋषभदेव भगवानना समयमा तपस्याने अंगे १२ मासनुं आहारनुं अन्तर त्यारे बावीश जिनना साधुने ८ मासनुं अने महावीर प्रभुना तीर्थमां ६ मासनुं होय छे, कारण के अवसर्पिणी कालना अनुभावने लईने शारीरिक बांधो हीन थतो जाय छे । प्रस्तुतमां बाल साधु साध्वी के जेना शरीर बगीचाना उगता कोमळ छोडवा जेवां छे, जेने स्वयोग्य For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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