Book Title: Jain Satyaprakash 1937 05 SrNo 22
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ for झाणं विमलं, थिरचित्तेणं कुणंति सूरिवरा || पत्थाणसरणकाले, वरया सा सारया होउ ।। ६ ॥ सिरिमायाबीक्खर - मयरूविस्सरियदाणमुहलक्खे ॥ जगमाइ ! घण्णमणुया, सइ पहाए सरंति मुया ॥ ७ ॥ वय वय मह हियजणणि ! मियक्खरेहिं मए किवं किच्चा || सक्केमि कव्वरयणं, काउं जेण प्पकालंमि ॥ ८ ॥ कुण साहज्जमणुदिणं, सुयसायरपारप त्तिकजंमि || णविणा दिrयरकिरणे, कमलवियासो कया हुज्जा ॥ ९ ॥ तुज्झ नमो तुज्झणमो, तुम प्पसाएण चविहो संघो ॥ सुयणाणज्जणसीलो, परबोहणपचलो होइ ।। १० ।। disha गंथयारा, गंथाई णवेअ तुह चरणे ॥ साहति सज्झसिद्धी, अणग्गलो ते पहावोऽत्त ॥। ११ ॥ गीयरइतियसवइणो, तरसा मिस्स पट्टराणीए || देवी सरस्सईए, विइया अणेगणामाई ।। १२ ।। सुदेवं पहुसमया, हिाइग मेव भारई भासं || णि सरस्सई तह, थुणंतु मुहु सारयं वाणीं ॥ १३ ॥ भत्ती पयाण तुहं, हंसोऽवि जए सुभ विवेइत्ति || तेसि किं पुण जेसिं, तुम चरणा सुमरिआ हियए ॥ १४ ॥ वामेयरपाणीहिं, धरई वरपोम्मपुत्थियं समयं । इयरेहिं तह वीण, क्खमालियं सेयवासहरिं ॥ १५ ॥ वयई णियमुहकमला, एयक्खरमालियं पणवपूयं ॥ संसुद्धबंभवइया, किरियाफलजोगवंचगया || १६ | वासरि विणेया, मणुया झाअंति मंतवण्णेहिं || जे ते पराजिणेंते, बिहफ विमलधिसणाए || १७ ॥ तब गुणसईअ जणणि ! जाय भव्वाण कय निसणाए । आणंदबुद्धिबुड्ढी, कल्लाणं रम्मरिद्धिजसं ।। १८ ।। For Private And Personal Use Only વૈશાખ (अपूर्ण)

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 44