Book Title: Jain Satyaprakash 1936 03 SrNo 09
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ચિત્ર ૨૮૮ શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ सारांश-९, जब कि साधुने समस्त आपवादिक चर्म ग्रहण ते दिशामां फायदापरिग्रहका त्याग कर दिया है, फिर वह कारक निवडे छे ए वात पग अमो बतावी चर्म सरीखी गन्दी चीज अपने पास कैसे गया छोए। खरेखर आवा लाभनी दृष्टिए रख सकता है ? अमारा ज्ञानी भगवन्ते जे आपवादिक विधान __आना जवाबमां जगाववानं जे, चामडं बतावेल छे, तेने निन्दनीय अने पापजनक गन्दु अने अपवित्र छे के केम, तेने माटे लखनारे श्वेतांबर संस्थानी धार्मिक लागणोने प्रथम जगावो गया छीए माटे फेर लखवानी महान् आघात पहचाडेल छ । जरुरत रहेती नथी। पोताना आचार्ये गृधनां पिछां शीखे समस्त परिग्रहनो त्याग करनार मुनि ग्रहण कों, पोताना शास्त्रमा अनेक अपवादो पोतानो पासे चर्म केम राखी शके एम जे जोया छतां पण ते तरफ आंखमींचामणां कहेवामां आव्यं तेना जवाबमां जगाववानं करीने बीजानी बाबतमां आ रीते लखता जे, समस्त परिग्रहनो अमारे त्याग छे. शरीर- लेखके केटली अनुचितता करी छे, ते वाचकना गुह्य अंगो ढांकवा लुगडं पण अमे वर्ग समजी शके तेम छे । राखता नथी, आवं बोलनार तमारा दिगम्बर आ वस्तु, जे कोई पोतानी मान्यतामां न मुनिओने मोरपिच्छो, गृधनं पिच्छ, वल्कल, आव्यो एने माटे गमे तेम लखवू अथवा करवं कमण्डलु अने पुस्तक कइ रीते कल्पो शके? एवी दिगम्बरीय शैलीने ज आभारी छ । कदाच एम कहेवामां आवे के, मोरपिच्छो विगेरे नास्तिकोने माटे दिगम्बरोना उद्गारो देखोसंयमादिकना उपकरण छे माटे दोष नथी, श्रुतसागरसूरिविरचित दर्शनप्राभृतवृत्ति--- तो अमारे पण चर्म कोइ प्रबल कारणे संयम- तथाऽपि यदि कदाग्रहं न मुञ्चन्ति तदा मार्गमां सहायक थवाथी संयमोपकरण छ। समर्थैरास्तिकैरुपानद्भिग्रंथलिप्ताभिर्मुखे ताड___चोथी बाबतमा एम जणाववामां आत्यु नीयाः, तत्र पपं नास्ति । छे के दशाविशेषां पण चर्म वापरवं ते भावार्थ-युक्तिथी समजाव्या छतां पण निन्दनीय अने पापजनक वात छे। आना जो नास्तिको कदाग्रह न मुके तो समर्थ जवाबमां जणाववानं जे. अमो प्रथम ज आस्तिकोए जोडाने विष्टावाळा करीने भोढे जणावी गया छोए के अमारा श्वेतांबर मुनि- मारवा, आम करवामां पाप लागतुं नथी । ओ चर्म राखता नथी, अने अमारा शास्त्रकारो तथा लेांकाने माटे दिगम्बरोना उद्गारो पण निषेध करे छे, आ अमारो राजमार्ग छे। जुओ-श्रुतसागरसूरिविरचित दर्शनप्राभृतछतां पण कोइ एवा प्रबल कारणे पुष्टालम्बन- वृत्ति-- नी खातर ग्रहण करी शके छे। आ _(जुओ पृष्ठ २९३) For Private And Personal Use Only

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