Book Title: Jain Satyaprakash 1936 01 SrNo 07
Author(s): Jaindharm Satyaprakash Samiti - Ahmedabad
Publisher: Jaindharm Satyaprakash Samiti Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૨૦૪ www.kobatirth.org શ્રી જૈન સત્ય પ્રકાશ तेने छोडीने अल्प सुखवाळा आपवादिक चर्ममां का लाभनी खातर प्रवृत्ति करे : वस्तुतः आ चर्मनुं प्रयोजन अपवाद दशमां बतावेल छे, परंतु नहि के शरीरना सुखने माटे । उत्सर्गमार्गथी शास्त्रकार भगवान् स्पष्ट तेनो निषेध ज करे छे । सारांश एछे के चर्म शरीरने सुख पाचाडवा माटे छे, आवुं जे लेखकनुं लखवं ते बिलकुल व्याजबी नथी । 1 आना चोथी बाबतमां एवं सूचववामां आयुं हतुं के शरीरने सुख पहांचाडनारी वस्तु ममत्वभावथी ग्रहण कराय छे जवाबमां जणाववानुं जे शरीरने सुख पहांचाडनार वस्तु जो ममत्वभावथो ग्रहण कराती होय तो अनाज विगेरे पण शरीरने सुख पाचाडनार छे, एने तमारा दिगम्बर निओ समभावी ज ग्रहण करता हशे के केम ? सारांश- ३, " चमडेका जूता पहनने से साईर्यासमिति हि बन सकती...' 29 आना जवाब मां जणाववानुं जे अमारा जैनश्वेतांबर मुनिओने बिलकुल जोडा पहेरवा कल्पता नथी, अने अमारा शास्त्रकार भगवानो पण स्पष्ट निषेध करे छे : आ अमारो राजमार्ग छे । आ बाबतना दशवैकालिक सूत्र विगेरेना पाठो अमो प्रथम आपी गया छीए । अपवाद-मार्गमां पण तळीया अने वल्लको बतावेल छे, परंतु नहि के सामान्यरोते गृहस्थ लोको लोढाना नळ विगेरे जेमां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जडया होय छे, एवा जे जोडा वापरे छे ते । आटला ज माटे उपानह शब्द आपवाथी सामान्य जोडामात्र आवी जात छतां पण तेम नहि आपतां चर्मपञ्चकमां तलियां अने खल्लको एम अलग अलग आपवामां आवेल छे । आ वाहने खास ध्यानमा राखवानी जरुरत छे । चामडाना जोडानी बात तो बाजु पर रहा परंतु चाखडी (काष्टपादुका) नो पण श्वेतांबर शास्त्रकारो निषेध करेल छे । कोइ प्रबल कारणे कदाचित् तलिया पगे बांध्या होय तो पण उपयोगवन्त मुनि ईर्यासमिति पाळी शके छे । ईर्यासमिति एटले शुं " ईरणमीर्या गतिः; तस्यां समितिः - सं सम्यक् प्रशस्ता अप्रवचनानुसारेण इतिश्चेष्टा, ईर्यासमिति: । भावार्थ-गमन करवुं तेनुं नाम ईर्या कहेवाय छे; तेमां जे समिति ते ईर्यासमिति कहेवाय । समिति पटले शुं के अरिहंत परमात्माना वचनने अनुसारे रुडी चेष्टा । अर्थात् अरिहंत परमात्माए जे रीते मुनिओने चालवानुं बतावेल छे ते प्रमाणे जे चालवुं तेनुं नाम ईर्यासमिति कहेवाय छे । अरिहंत परमात्माए मुनिओने कई रीते चालवानुं बतावेल छे तेने माटे जुओ- दशवैकालिकसूत्र, पांचमुं, गाथा त्रीजी : अध्ययन पुरओ जुगमाया पेहमाणो महिं चरे । वजंतो बीअहरियाई पाणे अद्गमट्टि || ३ || [ पुरतो युगमात्रया प्रेक्षमाणो महीं चरेत् । वर्जयन् बीजहरितानि प्राणांश्च दकमृत्तिकाम् ३] For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44