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( ८८ ) ढंग के व्यवहार की आपत्ति का परिहार कथमपि सम्भव नहीं है। आध्यात्मिक पुरुषों के दृष्टान्त से दोनों में समान व्यवहार स्वीकार कर लेने की जो बात कही गई है वह उचित नहीं है, क्योंकि आध्यात्मिक पुरुष चाँदी आदि को जो हेय समझते हैं वह इसलिये कि वे वस्तुयें उनके साधनामार्ग में रोड़े के समान हैं, वे इस तथ्य को हृदय से समझते हैं कि चांदी, सोना आदि सांसारिक द्रव्यों के अनर्थकारी आकर्षण से ऊपर उठे विना अध्यात्म-यात्रा सुचारुता और सफलता के साथ पूरी नहीं की जा सकती, इसीलिये वे इन वस्तुओं की छाया से भी दूर भागते हैं।
ज्ञेयमात्र की असत्यता के पक्ष में इस प्रश्न का भी समाधान शक्य नहीं है कि सीपी में दिखाई पड़ने वाली चाँदी और लोकसम्मत चांदी दोनों यदि समान रूप से ही असत्य हैं तो सीपी की चाँदी का असत्यत्व क्यों अल्प काल में ही समझ में आ जाता है और लोकसम्मत चांदी का असत्यत्व अनेक जन्मों तक भी समझ में नहीं आता ? ___इस प्रसङ्ग में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि सीपी में दीख पड़ने वाली जिस चाँदी के दृष्टान्त से ज्ञान के अन्य विषयों की असत्यता का अनुमान करने की आशा की जाती है उसकी भी असत्यता सिद्ध नहीं हो सकती क्यों कि सीपी में चांदी के प्रत्यक्ष जैसे विस्पष्ट अनुभव का होना सर्वसम्मत है जो चांदी को वहां सर्वथा असत् मानने पर कथमपि उपपन्न नहीं हो सकता, तो जब सीपी में दीख पड़ने वाली चाँदी की ही असत्यता सन्देह के गहन तम में तिरोहित है तब उसके उदाहरण से अन्य पदार्थों की असत्यता का साधन कैसे किया जा सकता है ?
यदि यह कहा जाय कि यदि ज्ञेय को ज्ञान से भिन्न अथवा अभिन्न किसी रूप में सत् नहीं माना जायगा तो समस्त ज्ञेय में समस्त ज्ञान की भिन्नता समान होने के कारण यह व्यवस्था न हो सकेगी कि कौन ज्ञेय किस ज्ञान का विषय हो
और किस ज्ञान का विषय न हो, फलतः समस्त ज्ञेय को समस्त ज्ञान का विषय होने की आपत्ति उठ खड़ी होगी, जिसके परिहार का ज्ञान और ज्ञेय के परस्पर-भेद पक्ष में कोई उपाय नहीं है, और यदि ज्ञेय को ज्ञान से अभिन्न माना जायगा तो अनेक विषयों को प्रकाशित करनेवाले एक ज्ञान रूप समूहालम्बन ज्ञान की उपपत्ति नहीं होगी क्योंकि अनेक ज्ञेयों में एक ज्ञान का अभेद किसी प्रकार उपपन्न नहीं हो सकता, इसलिये ज्ञेय को जब ज्ञान से भिन्न अथवा अभिन्न रूप में सत् नहीं माना जा सकता तो अगत्या उसे असत्य ही मानना होगा और ज्ञेय की असत्यता के पक्ष में जो एक दो दोष बताये गये हैं उनके परिहार का मार्ग