Book Title: Jain Nyaya Khand Khadyam
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chowkhamba Sanskrit Series

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Page 149
________________ ( १४० ) भी दूसरे का उपलम्भ- प्रत्यक्ष होता है, जैसे गौ और अश्व में परस्पर भेद होने से एक के अप्रत्यक्षकाल में भी दूसरे का प्रत्यक्ष होता है । पर गुण और गुणी में एक के अप्रत्यक्षकाल में दूसरे का प्रत्यक्ष कदापि नहीं होता, किन्तु दोनों का प्रत्यक्ष नियमेन साथ ही होता हैं, अतः उनमें अभेद मानना ही न्यायसंगत है, तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि गौ और अश्व में जो सहोपलम्भ के नियम का अभाव है वह उनकी परस्पर भिन्नता के कारण नहीं है अपितु गौ और अश्व के उपलम्भ की सामग्रियों के सन्निधान में नियम न होने के कारण है । इसी प्रकार गुण और गुणी के सहोपलम्भ का नियम भी उनकी परस्पर अभिन्नता के कारण नहीं है किन्तु उन दोनों के उपलम्भ की सामग्रियों के नियमित सन्निधान के कारण है । अतः सहोपलम्भ का नियम उपलभ्यमान वस्तुवों की अभिन्नता का अप्रयोजक है । दूसरी बात यह है कि गुण और गुण में सहोपलम्भ का नियम सर्वत्र सिद्ध भी नहीं है । जैसे जिस मनुष्य का नेत्र पित्तदोष से ग्रस्त होता है उसे स्वभावतः श्वेत भी शङ्ख पीत दिखाई देता है, इस प्रकार शङ्ख के स्वगत रूप श्वेत की अप्रत्यक्षतादशा में भी शङ्ख का प्रत्यक्ष होने से गुणी शङ्ख और उसके श्वेत रूपात्मक गुण में सहोपलम्भ का नियम नहीं है । इस पर यह कहना कि पीत ही होता है, श्वेत नहीं होता, ठोक नहीं है, नेत्र वाले मनुष्य को पीत दिखाई देता है वही श्वेत दिखाई देता है । यदि यह कहा जाय कि उस शङ्ख होते हैं, उनमें पीत शङ्ख का प्रत्यक्ष सदोष नेत्र से प्रत्यक्ष निर्दोष नेत्र से होने का नियम है, अतः एक काल शङ्खों का प्रत्यक्ष नहीं होता, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि दो शङ्ख की सत्ता मानने पर उक्त कल्पना के अनुसार नेत्र से दो शंख का प्रत्यक्ष न होने पर भी त्वक् से तो दो शङ्ख का प्रत्यक्ष होना ही चाहिए पर ऐसा नहीं होता, इस लिए सदोष निर्दोष नेत्र वाले दो मनुष्यों के पीत और श्वेत रूप में शङ्ख के प्रत्यक्ष के समय पीत और श्वेत दो शङ्खों के अस्तित्व की कल्पना संगत नहीं हो सकती । पीत दिखाई देने वाला शङ्ख क्योंकि जो शङ्ख दोषयुक्त निर्दोष नेत्र वाले मनुष्य को समय वहाँ पीत और श्वेत दो तथा श्वेत शङ्ख का में एक व्यक्ति को दो यदि यह कहा जाय कि गुण और गुणी में समानदेशता और समानकालता का नियम है, अतः उनमें अभेद मानना आवश्यक है, क्योंकि जिन वस्तुओं में परस्पर भेद होता है उनमें समानदेशता और समानकालता का नियम नहीं होता, किन्तु वे भिन्न देश और भिन्नकाल में भी रहती हैं जैसे हाथी, घोड़े आदि । पर गुण और गुणी तो नियम से एकदेश और एककाल में ही रहते हैं, इस लिये उनकी परस्पर अभिन्नता अनिवार्य है, तो यह कहना ठीक नहीं है,

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