Book Title: Jain Nyaya Khand Khadyam
Author(s): Badrinath Shukla
Publisher: Chowkhamba Sanskrit Series

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Page 159
________________ ( १५० ) का समाहार सम्भव है । इसी प्रकार न्यायसम्मत आत्मा में ज्ञान आदि गुणों की अपेक्षा उत्पत्ति तथा विनाश का और आश्रय की अपेक्षा ध्रौव्य का समाहार हो सकता है । अतः उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यरूप लक्षण से ही द्विविध आत्मा में द्रव्य व्यवहार की सिद्धि सम्भव है । लक्षण के अन्य प्रयोजन इतरभेद की सिद्धि भी इसी लक्षण से सम्पन्न हो सकती है । जैसे जैन शासन के अनुसार आत्मा द्रव्यपर्याय उभयात्मक है अर्थात् बौद्धदर्शन का प्रवाह द्रव्य और प्रवाही ज्ञान पर्याय है एवं न्यायदर्शन का अनादिनिधन आश्रय द्रव्य तथा क्षणिक ज्ञानादि गुण पर्याय है । द्रव्य, पर्याय उभयात्मक इस आत्मा में पर्याय की अपेक्षा उत्पत्ति तथा विनाश और द्रव्य की अपेक्षा धौव्य का समाहार होने से उत्पादव्ययध्रौव्य का समाहार रूप द्रव्यलक्षण अक्षुण्ण है, इस लक्षण द्वारा आत्मा में इतर भेद अर्थात् उसके द्रव्य अंश में पर्याय अंश का भेद निर्बाध रूप से सिद्ध हो सकता है । क्योंकि अशुद्ध द्रव्यार्थिक द्वारा उक्त लक्षणरूप हेतु का ज्ञान तथा उसमें इतरभेद की व्याप्ति का ज्ञान अनायासेन सम्भव हैं । पद्य के उत्तरार्द्ध-द्वारा उक्त रीति से आत्मा में द्रव्यव्यवहार तथा इतरभेद की सिद्धि की सम्भाव्यता की ही सूचना दी गयी है ॥ नाशोद्भवस्थितिमति क्रमशो न शक्तो द्रव्यध्वनिस्तदिह नो पृथगर्थताभृत् । शब्दस्वभावनियमाद् वचनेन भेदः स्वव्याप्यधर्मिंग बहुत्वनिराकृतेश्च ।। ६५ ।। उत्पत्ति, विनाश और धौव्य को द्रव्यपद का अर्थ मानने पर यह प्रश्न होता है कि द्रव्य पद से उत्पत्ति आदि का बोध भिन्न शक्तियों द्वारा होता है वा एक शक्ति द्वारा, यदि भिन्न शक्तियों द्वारा माना जायगा तो हरि शब्द के समान द्रव्य शब्द नानार्थक हो जायगा और उस दशा द्रव्य शब्द से उत्पत्ति आदि तीनों का सहबोध न होकर एक-एक के पृथक् बोध की आपत्ति होगी और यदि एक शक्ति द्वारा तीनों अर्थों का बोध माना जायगा तो जैसे पुष्पवन्त शब्द एक शक्ति से चन्द्र, सूर्य दो अर्थों का बोधक होने से द्विवचनान्त होता है उसी प्रकार एक शक्ति से तीन अर्थों का बोधक होने से द्रव्य शब्द के नियमेन बहुवचनान्त होने की आपत्ति होगी । इस श्लोक से इसी प्रश्न का समाधान किया गया है, जो इस प्रकार है जिस शब्द से जिन अर्थों का बोध एक साथ न होकर क्रम से होता है उन अर्थों में उस शब्द की भिन्न-भिन्न शक्ति मानी जाती है और वह शब्द उन अर्थो में नानार्थक माना जाता है; जैसे हरि शब्द से सिंह, वानर आदि

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