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मानना होगा, क्योंकि जो अन्यनिरपेक्ष होता है वह अनादि होता है, यह नियम है। वृक्ष आदि पदार्थ सादि हैं, अतः उन्हें अन्यनिरपेक्ष नहीं माना जा सकता।
(४) वृक्ष आदि पदार्थ अन्यसापेक्ष हैं-यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि यदि उन्हें अन्यसापेक्ष माना जायगा तो उन्हें सत् और असत् दोनों से भिन्न मानना होगा। यतः सत्य पदार्थ अन्यसापेक्ष नहीं होते जैसे आकाश आदि, एवं असत् पदार्थ भी अन्यसापेक्ष नहीं होते जैसे आकाशपुष्प आदि । और जब वे सत् और असत् दोनों से भिन्न हो जायगे तब वे अव्यवहार्य हो जायगे, क्योंकि पदार्थ सत् अथवा असत् रूप से ही व्यवहार की भूमि में अवतीर्ण होते हैं।
(५) वृक्ष आदि पदार्थ उत्पत्ति के पूर्व कारणों मे सत् होते हैं-यह बात भी ठीक नहीं है, यतः वे यदि उत्पत्ति के पूर्व भी सत् होंगे तो उनके सम्बन्ध में कारणों का व्यापार व्यर्थ हो जायगा। क्योंकि कार्य को सत् बनाना अर्थात् उसे अस्तित्व में लाना ही कारणों के व्यापार का प्रयोजन है, तो फिर जब कार्य कारणों के व्यापार के पूर्व भी सत् रहेगा तो कारणों का व्यापार क्या करेगा ?
(६) वृक्ष आदि पदार्थ उत्पत्ति के पूर्व कारणों में असत् होते हैं यह बात भी ठीक नहीं है, यतः इस पक्ष में कार्य की उत्पत्ति के पूर्व कारण के साथ उसका कोई सम्बन्ध न होगा, अतः कारण को अपने से असम्बद्ध कार्य का ही उत्पादक मानना होगा, फलतः तैल-रूप कार्य जैसे तिल से असम्बद्ध है वैसे ही बालू से भी असम्बद्ध है। तिल और बालू से तैल की असम्बद्धता में कोई अन्तर नहीं है, इसलिए तैल जिस प्रकार तिल से उत्पन्न होता है उसी प्रकार बालू से भी उसके उत्पन्न होने की आपत्ति खड़ी होगी।
(७) वृक्ष आदि पदार्थ परस्पर भिन्न हैं-यह बात भी ठीक नहीं है। यतः यदि उन्हें परस्परभिन्न माना जायगा तो उनमें परस्पर-भेद की प्रतीति का प्रसङ्ग होगा । और इस प्रसंग को इष्ट नहीं माना जा सकता क्योंकि भेद का निर्वचन अशक्य है।
(८) वृक्ष, घट, पट आदि पदार्थ परस्पर-अभिन्न हैं -- यह बात भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन्हें परस्पर अभिन्न मानने पर उनमें परस्पर अभिन्नता की प्रतीति की तथा एक से दूसरे के कार्य की सम्पन्नता की आपत्ति खड़ी होगी।
(९) वृक्ष आदि पदार्थ व्यापक अर्थात् सार्वत्रिक हैं- यह बात भी ठीक नहीं है, यतः यदि उन्हें सार्वत्रिक माना जायगा तो वे आकाश के समान निष्क्रिय होंगे और उस दशा में उनके आदान-प्रदान आदि व्यवहार का लोप हो जायगा।