Book Title: Jain Lakshanavali Part 1 Author(s): Balchandra Shastri Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 7
________________ जैन-लक्षणावली भिन्न है। प्रतएव जैन वाङ्मय के सामान्य अध्येता के लिए सहज रूप में उनको समझ पाना कठिन है। मुख्तार साहब की कल्पना थी कि दिगम्बर-श्वेताम्बर जैन साहित्य के सभी प्रमुख ग्रन्थों से इस प्रकार के शब्द उनकी परिभाषाओं के साथ संकलित करके, हिन्दी अनुवाद के साथ, पारिभाषिक कोश तैयार किया जाय। इस कल्पना के अनुसार लगभग चार सौ ग्रन्थों से शब्द और उनकी परिभाषाएँ संकलित की गई । इस प्रकार के कार्य प्रायः नीरस लगने वाले तथा श्रम और समय साध्य होते हैं। 'लक्षणावली' के प्रस्तुत खण्ड के प्रकाशन में पर्याप्त समय लग गया। इसे प्रकाशित करते हुए हर्ष और विषाद की सम्मि. लित अनुभति हो रही है। हर्ष इसलिए कि मुख्तार साहब ने 'जैन लक्षणावली' की जो परिकल्पना की थी. उसे मूर्तरूप प्राप्त हो सका, और विषाद इसलिए कि मुख्तार साहब तथा बाबू छोटेलालजी के जीवनकाल में यह कार्य सम्पन्न नहीं हो सका। प्राभार वीर सेवा मन्दिर के साथ साह शान्तिप्रसाद जी का नाम अभिन्न रूप में जुड़ा हुआ है। वह न केवल अनेक वर्षों से उसके अध्यक्ष हैं, अपितु उसकी अभिवृद्धि में सक्रिय योगदान देते रहते हैं। प्रस्तत ग्रन्थ के प्रकाशन में उनकी प्रारम्भ से ही गहरी दिलचस्पी रही है। इस अवसर पर हम उनका विशेष रूप से आभार मानते हैं। _ 'लक्षणावली' के निर्माण और प्रकाशन में अनेक विद्वानों का योग रहा है। मुख्तार साहब के साथ पं. दरबारीलाल कोठिया तथा पं. परमानन्द शास्त्री पूरी योजना के सूत्रधार रहे हैं। सामग्री के प्रारंभिक संकलन में पं. किशोरीलाल शास्त्री, पं. ताराचन्द शास्त्री तथा पं. शंकरलाल शर्मा का योगदान रहा है। पं. हीरालाल शास्त्री तथा पं. दीपचन्द्र पाण्डया ने संकलित सामग्री को व्यवस्थित करने के प्रयत्न किये और अन्ततः पं. बालचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री ने संकलित सामग्री का सम्पादन करके उसे प्रकाशन के लिए वर्तमान रूप दिया है। प्रस्तावना में उन्होंने 'लक्षणावली' में उपयोग किये गये ग्रन्थों में से एक सौ दो ग्रन्थों का परिचय दे दिया है, साथ ही संगृहीत लक्षणों के वैशिष्ट्य पर भी प्रकाश डाला है। अन्त में तीन उपयोगी परिशिष्ट भी दिये हैं। प्रेस कापी करने में पं. पाश्र्वदास न्यायतीर्थ का योग रहा है। श्री पन्नालाल अग्रवाल ने समय-समय पर आवश्यकतानुसार सम्बन्धित ग्रन्थ उपलब्ध कराये। मुद्रणप्रस्तुति ग्रादि के सम्बन्ध में डा. गोकुलचन्द्र जैन का सहयोग तथा प्रकाशन में सोसायटी के तत्कालीन मंत्री श्री प्रेमचन्द जैन (कश्मीर वाले) का योगदान प्राप्त हुआ है। इनके अतिरिक्त जिन-जिन विद्वानों और महानुभावों का इस ग्रन्थ के प्रकाशन में योगदान रहा है, उन सबके प्रति 'वीर सेवा मन्दिर' कृतज्ञता व्यक्त करता है। परी 'लक्षणावली' का प्रकाशन तीन भागों में होगा। हर्ष है कि दूसरे भाग की प्रेस कापी तैयार हो चुकी है तथा मुद्रण प्रारंभ हो गया है। तीसरे भाग का सम्पादन-कार्य चल रहा है। प्राशा है, इस महायज्ञ की पूर्णाहुति शीघ्र संभव होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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