Book Title: Jain Lakshanavali Part 1
Author(s): Balchandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 6
________________ प्रकाशकीय मुख्तार साहब ने किसी महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में शास्त्रों का गहन अध्ययन नहीं किया था, प्रत्युत अपने अनवरत स्वाध्याय, सूक्ष्म दृष्टि, गहरी पकड़ और प्रतिभा सम्पन्नता के कारण बहुश्रुत विद्वान् बने । ऐतिहासिक अनुसन्धान, प्राचार्यों का समय-निर्णय, प्राचीन पाण्डुलिपियों का सम्यक परीक्षण तथा विश्लेषण करने की उनकी अद्भुत क्षमता थी। उनके प्रमाण अकाट्य होते थे । उनकी यह साहित्यसेवा अर्धशताब्दी से भी अधिक के दीर्घ काल में व्याप्त है। जीवन के अन्तिम क्षण तक वे अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य में लगे रहे । 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित उनका अन्तिम ग्रन्थ 'योगसारप्राभत' उनकी विद्वत्ता का उन्नत सुमेरु है। 'वीर-सेवा-मंदिर' उनका मूर्तिमान कीर्तिस्तंभ है। बाबू छोटेलाल सरावगी 'वीर-सेवा-मंदिर' को सुदृढ़ आधार देने और सूप्रतिष्ठित करने में कलकत्ता-निवासी स्व. बाब छोटेलाल सरावगी का विशेष योगदान रहा है। वह मुख्तार साहब के प्रति गहरी आत्मीयता रखते थे। 'वीर-सेवा-मंदिर' को सरसावा से दिल्ली लाने तथा यहाँ विशाल भवन निर्माण कराने में उनका अनन्य हाथ रहा। वे प्रारम्भ से ही आजीवन संस्था के अध्यक्ष रहे तथा तन-मन-धन से इसके विकास के लिए प्रयत्नशील रहे । वास्तव में वे 'वीर सेवा मन्दिर' के प्राण थे । छोटेलालजी सत्प्रवृत्तियों के धनी, अध्ययनशील तथा उदारचेता व्यक्ति थे। जैन साहित्य और संस्कृति के विकास के लिए वे निरन्तर प्रयत्नशील रहते थे। जैन-दर्शन, इतिहास, कला और पुरातत्व के अनसन्धान-कार्य में उनकी बड़ी रुचि थी। इन विषयों के अनुसन्धाता के लिए वे कल्पवक्ष थे। रायल एशियाटिक सोसाइटी के वे एक सम्मानित सदस्य थे। डा. एम. विन्टरनित्ज ने अपने ग्रन्थ 'हिस्ट्री प्रॉव इण्डियन लिटरेचर' भाग २ में छोटेलालजी का बड़े आदर के साथ उल्लेख किया है। यदि छोटेलालजी का सहयोग प्राप्त न हुआ होता तो संभवतया डा. विन्टरनित्ज अपने इतिहास-ग्रन्थ में जैन-साहित्य का इतना विशाल और गंभीर सर्वेक्षण प्रस्तुत न कर पाते। छोटेलाल जी का विद्वत्समाज से अत्यन्त निकट का सम्बन्ध था। जैन ही नहीं, इतिहास और पुरातत्त्व के क्षेत्र में कार्य करने वाले भारतीय तथा विदेशी विद्वानों से उनकी बड़ी मित्रता थी। खंडगिरि और उदयगिरि उन्हीं की पुरातात्विक खोज के परिणाम-स्वरूप प्रकाश में आये । 'जैन बिबलियोग्राफी' उनका अमर कीर्तिस्तंभ है। उन्होंने बिब्लियोग्राफी के दूसरे भाग की भी सामग्री संकलित कर ली थी किन्त अस्वस्थ रहने के कारण उसका सम्पादन नहीं कर पाये। डा. ए. एन. उपाध्ये द्वारा उसका सम्पादन किया जा चुका है और अब वह शीघ्र ही प्रकाशित होगी। पुरातत्त्व एवं इतिहास के प्रेमी होने के साथ-साथ छोटेलालजी एक सफल समाजसेवी एवं नेता भी थे। वे समाज की विभिन्न संस्थानों तथा गतिविधियों में बराबर सक्रिय सहयोग देते रहे। कलकत्ते का महावीर दिगम्बर जैन विद्यालय, अहिंसा प्रचार समिति, दिगम्बर जैन यूवक समिति. जैन सभा प्रादि अनेक संस्थाएं उनके सहयोग की प्रतीक हैं । इसके अतिरिक्त व्यापारिक क्षेत्र में भी छोटेलाल जी भक्तित्व की छाप मिलती है। कलकत्ते की प्रसिद्ध 'गन्नी ट्रेड एसोसिएशन' को सफल बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था। 'वीर सेवा मन्दिर' के उक्त दोनों ही आधार-स्तंभ अब नहीं रहे, फिर भी उनके कृतित्व के रूप में उनकी कीर्ति अमर है । मनुसन्धान के क्षेत्र में उनका स्मरण सदा गौरव के साथ किया जाता रहेगा। 'जैन लक्षणावली' या पारिभाषिक शब्द-कोश 'जैन लक्षणावली के प्रकाशन की परिकल्पना मुख्तार साहब ने सन् १९३२ में की थी। जैन में अनेक शब्दों का कुछ विशेष प्रथों में प्रयोग किया गया है। यह अर्थ उनके प्रचलित अर्थ से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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