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श्री शांतिनायनो रास खंग पांचमो. २७१ दमो, जुवइ पिया इरिकन निनं ।। १ ॥ निय घरसोमा परगे, हममणी कु तकलंक कलिनुवणं ॥ जेहिं न जाया धूया, ते मुहिया जीवलोगम्मि । ॥ ५॥ पूर्वटाल ॥ एक दिन एक मुनि प्राविया, विद्याधर गुणवंत ॥ प्रणमी पूरे रे जावगुं, मुझ जांखो नगवंत ॥ कर ॥ ६ ॥ मुझ पुत्री वर कोण हशे, कहे डानी भणगार ॥ होशे जा रे वेदुनो, श्रीवत्सराज कु मार ॥ क॥ ॥ नूचर बरशे रे एहने, पण नहिं तहारी रे पास ॥ नर पति कदे कोग एहनु, कारण स्वामी प्रकाश ॥क ॥ ७॥ मुनि कहे गुण नृप ताहरू, ते एक मास, थाय ॥ फरि पूटे रे विवाहनो,हवे कहो कोण उपाय ॥२०॥ ए ॥ मुनि कहे जगिनी रे ताहरी, नूचर शूर नरिंद॥ परागी प्रेमें रे तेदा, अधिकी प्रीति अमंद ॥ कम् ॥ १७ ॥ अन्य वली दुतेदने, रमणी रुपनिधान ॥ चित्त दरी लीयुं रायन. तुज नगिनी अपमान ॥ कण् ॥ ११ ॥ रंगें रमे राय तेहगुं,यदोनिय मंदिरमाय ।। तूट पडी तुज बहेनगुं, श्राव्यु उदे अंतगय ॥ 2 ॥ १२ ॥ दिसमें शो क्य साने घj. गोक्य समुं नहीं इव ॥ अहोनिग रहे उन ताकती, नाये निंद ने जरव क॥ १३ ॥आरति मनमां रे अति घणी, मुग उपर नहीं मान || तप नवि कीg रे पूग्नें, तो पामी अपमान ॥ कर ॥ १४ ॥ हवे नप कर कांड पावते. नवं पामुं कांड सुख ॥ एम जागी तप श्राद व, कांश गोक्यने :ख || क० ॥ १५ ॥ यतः ॥ श्राी देवान्नमस्पंति, तपः कुर्वति गंगिणः ॥ निर्धना विनयं यांति. वृक्षा नारी पतिव्रता ॥३॥ पूर्वदाल ॥ तप करी काल कम्यो नेणे, व्यंतरी जातिनी देव ॥ अटवीमाहे
कपनी. को बहु देवी रे सेव 10॥१६॥ शूर नरिंदनी गेहिनी, तेदनी शाक्य सुजाण ॥ दानादिक गुण श्रादरी, दन घरे गुणग्वाणि ॥ ॥ ॥ ११ ॥ य श्रीदनारे नामथी, कन्या गुणद नंमार ॥ पुरब चरी री, दे तसब अपार ॥ क० ॥ १७ ॥ यामिक नाने के नित्य हणे. अद्यापि गति ॥ देवीपाए मृकजी. कन्या धरि मन प्रीनि ॥ का ॥ 1 ! | सन्दतां पान तेहने प्राव बलराज । नरदय करती रे वा रो, चलो म्हची लाज | ग.० ॥ २० ॥ श्रीनाने पर विहांधी निसरीनेछ । देवीस्थान प्रावशे, याशे कारज एन | कल ॥ १ ॥ एम कड़ी मुनि पत्या. चरनारे यंग १ कन्या प्राणी गुणी हदों,