Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 437
________________ श्री शांतिनाथनो रास खंमनछोए .. रे हो थापणो ए राजान॥दो एह कर्मकर नपरें, नपरे रे दो एवई केमस न्मान ॥ नि ॥ ३४ ॥ हो चुम्मालीशमी ढालमां. ढासमां रे हो प्र कव्यो पुण्य विलास ॥ हो रामविजय कहे सांजलो, सांजलो रे हो मन माहे धरि उन्नास ॥ नि० ॥ ३५॥ सर्व गाया ॥ १७३५ ॥ लोका७ि३॥ ॥दोहा॥ . ॥ घर आवी सुसरो कहे, शीलवतीने एम ॥ जीरण कंचुक परहरी, पहेर नवो धरि प्रेम ॥ १ ॥ जातां नृप भावालमां, पोसाये निर्धार ।। एक नूर कह्यो श्रादमी, कपई नर हजार ॥ ३ ॥ पण नदि माने ते कहण, सतां सुखमांहे राति ॥ बास लेवाने मोकली, ते कग्ये परनात ॥३॥ राजनुबन ऊनी रही,नूतन जाणी तास । प्रतिहारिणी तब जइ, नृपने करे घरदास ॥ ४ ॥ नृप श्रावी कहे तेहने, कां तुज एहवो वेश ।। जीरण कंचुक केम धरे, लाजे नहिं सुविशेष ॥ ५ ॥ लाजें नीचे जोवती, नवि बोले ते लगार ॥ कंतें सूधी उलरवी, सती शीरोमणि लार ॥ ६॥ राजायें देवरावी, गोरस वदुर्बु तास ॥ यावी मंदिर लेश्ने, धरती अंग उनास ॥ ॥ बीजे दिन तेमहिज गइ, शीलवती नृपगेह ।। नृप कहे मुफ अर्पित ग्रहो, वारवाण धरि नेह ॥ ७ ॥ ते न लिये तब रो पी, बोल्यो राजा एम ॥ कहेण न मानिश माहरूं, तोनहिं तुजने हम ॥ ॥ ॥ सा बोली सुंदर अहव, दोय असुंदर देव ॥ पण निचे खं नहि, जीव जाय नित्यमेव ॥ १० ॥ यतः ॥ श्रावातु यातु लक्षीचा, पत्ता चदता ऊनः ॥ जीनितं मरणं चाऽस्नु, सतां धर्मान्न विध्युतिः ॥ ॥ १ ॥ ॥ दाल पिस्तालीशमी ॥ ॥मानां दरजणनी लंकानो राजा ॥ए देशी । कत्रिम कोप की कहे रे.मेचकने तब ज़प ॥ यापनमाने मादरी,ए नारीनुं अफल स्वरूप रे ॥१॥ .. दियडानी बातो,नृप रीज्यो रे ए निरखी धातो, मन मानी र मनमानी ए नारी सुजातो. रे हियडानी बातो ॥ एयांकणी ॥ देयों ए कारागारमा रे यजर न करो शान ॥ नृपयाणा निनुपी धन्या, इ चाव्या के रत दिवाज दिए ॥ २॥ पण न चली निज चिनी, गीजवनी गुणवंत ॥ नुष्ट २ पानी तिहां नडाचे ने निज कंन । दिन व कारा प्रिये. नवि मृक गारवाण ॥ चरुप्यकारफ, एहकैम . . --MIRRORARoman. ...

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