Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 08
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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श्री शांतिनाथनो रास खंम हो. ४१३ । हो लाल ॥ होजी पुण्य तणे संयोग,तेज सवल ते नृप तणो ॥ हो लाल ॥१॥ होजी वैरी नम्या सवि पाय, आवी करे सदु चाकरी ॥ हो । होजी एके रे दोय, पाणी पिये वाघ वाकरी ॥ हो ॥ २ ॥ होजी
वलीयो सूरपाल राय,माय तायनी करे सेवना ॥ हो० ॥ होजी साते व्य . सन निवार, पद प्रणमे जिनदेवना ॥ हो ॥३॥ होजी एक दिवस , उद्यान, श्रुतसागर मुनि धाविया ॥ हो ॥ होजी षट्कायना रखवाल, -- सदु ऊपर सम नाविया ॥ हो ॥ ४ ॥ होजी वंदन काज नरें, तात
प्रिया साथें चट्या ॥ हो ॥ होजी आवी वनह मकार, गुरु वंदे हेजें ह - व्या ॥ हो० ॥ ५ ॥ दोजी गुरु दिये देशन सार, ए संसार अशाश्वतो ॥ - हो ॥ होजी एक जिनधर्म ए सार, करो दिल राखी हिंसतो ॥ हो ।
॥ होनी तन धन यौवन एह,जाय नदीना पूर ज्यु ॥ हो ॥ दोजी का - रिमो सयण सनेह, उमी जाये अर्कतूल ज्युं ॥ हो ॥ ७ ॥ होजी कू ___डो ए राज्यविलास, आश किसी करो एहन। ॥ हो ॥ होजी जलमां
जेम पतास, तेम पुजलबबि देहनी ॥ हो० ॥ ७ ॥ होजी ग्रहे श्रावकनो धर्म, निसुणी गुरुनी देशना ॥ दो० ॥ होजी पूढे कहो मुज मर्म,कर्म क खां श्यां क्वेशनां ॥ हो ॥ ए॥ होजी केम मुखने वली सुख, पाम्यो प्रनु परकाशियो ॥ हो० ॥ होजी गुरु कहे सुण राजें, दानगुरों चित्त वासियो ॥ हो० ॥ १० ॥ होजी कस्यो तें अतिथिसंविनाग, पूरवनव ते सांजलो ॥ हो ॥ दोजी कहे मुनिवर वडनाग, सुणे नृप मूकी मामलो ॥ हो ॥ ११ ॥ होजी जरतें नूमिप्रतिष्ठ, नयरें वीरदेव नामथी हो॥ होजी निवसे आवक एक, जस मनमा शंका नथी । हो ॥ १२ ॥ हो जी तस घरे सुव्रता नारी, चित्त चोखी शुद्ध श्राविका ॥ हो ॥ होजी मा ने निजगुरु प्राण, समजू सूधी नाविका ।। हो ॥ १३ ॥ होजी अष्टमी दिन एक वार, वीरदेव पौषध पादयो । हो ॥ होजी पारण दिन नज माल, चिंते एम हर्षे नस्यो । हो ॥ १४ ॥ दोजी जगमा ते नर धन्य, . पोपधवतने पारणे ॥ दो० ॥ होजी पडिलाने शुद्ध अन्न, मुनिवरने हित कारणें ॥ हो ॥ १५ ॥ होजी ऊती दिशि अवलोक, करवा लाग्यो चिटुं: दिशे ॥ हो ॥ होजी धावतुं मुनियुग दीत, देखी दिनडे उनसे । हो० ॥ १६ ॥ होजी सहामो जश् वीरदेव, पडिलाने मुनि नावयु ॥ हो ॥ हो

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